
नमस्कार दोस्तों,
स्वागत है आप सभी का!
“दो फल ना दे, छाया तो देता ही है” – यह पंक्तियां इस कहानी की भावना को पूरी तरह व्यक्त करती हैं।
दोस्तों, कहते हैं कि जो औलाद अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा करती है, उनका सम्मान करती है, और उनके साथ प्रेम व आदर का व्यवहार करती है, उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही, उनकी औलादें भी उनसे वही व्यवहार करती हैं।
इस कहानी में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। यह कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि माता-पिता का जीवन हमारे लिए कितना मूल्यवान है। यह एक प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक कहानी है जिसे आपको अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।
इसलिए दोस्तों, आपसे निवेदन है कि इस कहानी को शुरू से अंत तक ध्यानपूर्वक पढ़ें।
गांव में एक सज्जन व्यक्ति, राम सिंह, रहता था। वह बहुत सरल, विनम्र और शांत स्वभाव का था। उसने कभी किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं किया, न ही कभी किसी को अपनी वाणी से दुख पहुंचाया। राम सिंह की शादी हो चुकी थी, उसकी एक पत्नी और एक छोटा बेटा था। उनके पास थोड़ी जमीन थी, जहां वह खेती करता था। वह मेहनती था और खेतों में दिनभर काम करता। अगर कोई और काम मिलता, तो वह उसे भी कर लेता। इसी तरह उसकी जिंदगी चल रही थी।
एक दिन राम सिंह ने सोचा कि उसका बेटा अब पढ़ने लायक हो गया है। उसने मन में ठाना कि वह अपने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाएगा। उसने कहा, “हम तो पढ़ाई नहीं कर पाए, लेकिन मैं अपने बेटे को इतना पढ़ाऊंगा कि वह कुछ बड़ा बन सके और अपना जीवन अच्छे तरीके से जी सके।”
राम सिंह ने अपने विचार को सच में बदल दिया। वह खेतों में मेहनत करता और जब कोई अतिरिक्त काम मिलता, तो उसे भी कर लेता। उसकी मेहनत का एक ही मकसद था—अपने बेटे को पढ़ाना। उसने बेटे का अच्छे स्कूल में दाखिला करवा दिया। बेटा पढ़ाई में जुट गया और समय बीतने के साथ वह आगे बढ़ता गया।
उसे हमेशा अच्छे स्कूलों में एडमिशन मिलता रहा। पढ़ाई में मेहनत करते हुए, उसने एक दिन बेहतरीन डिग्रियां हासिल कर लीं। डिग्रियां पूरी करने के बाद, राम सिंह के बेटे को एक बड़े शहर में नौकरी मिल गई। नौकरी के लिए वह शहर चला गया, वहां उसने किराए पर एक कमरा लिया और नौकरी करने लगा। इस दौरान राम सिंह और उनकी पत्नी गांव में ही रह गए।
दोस्तों, राम सिंह और उनकी पत्नी अपने बेटे की सफलता से बेहद खुश थे। उनका सपना था कि उनका बेटा एक अच्छा इंसान बने और जीवन में कुछ बड़ा हासिल करे। अब उनका बेटा शहर में नौकरी कर रहा था और वे गांव में एक साधारण और सुखी जीवन बिता रहे थे।
नौकरी के दौरान राम सिंह के बेटे को एक लड़की से प्यार हो गया। उनका प्रेम इतना गहरा हो गया कि वह अंततः प्रेम विवाह में बदल गया। लड़की ने अपने पिता से अपनी इच्छा जताई कि वह राम सिंह के बेटे से विवाह करना चाहती है। लड़का होनहार था, इसलिए लड़की के पिता ने खुशी-खुशी विवाह के लिए हामी भर दी। बिना किसी झिझक के उन्होंने अपनी बेटी का विवाह राम सिंह के बेटे से कर दिया।
राम सिंह का बेटा अब अपनी पत्नी के साथ शहर में रहने लगा। एक दिन उसने सोचा कि उसे अपने माता-पिता से मिलने गांव जाना चाहिए। वह अपनी पत्नी को लेकर गांव पहुंचा। जब वह अपने माता-पिता के घर आया, तो उसकी मां ने उसे देखकर खुशी से गले लगा लिया और कहा, “तूने आने में इतना समय क्यों लगा दिया? तूने हमारी कोई खबर तक नहीं ली। इतने दिनों बाद आया है। यह लड़की कौन है?”
राम सिंह के बेटे ने जवाब दिया, “मां, यह आपकी बहू है। मैंने विवाह कर लिया है।” बेटे के मुंह से यह सुनकर माता-पिता को पहले तो खुशी हुई, लेकिन फिर उनके चेहरे पर मायूसी छा गई। बेटे ने हैरान होकर पूछा, “मां, आप दोनों का चेहरा अचानक उदास क्यों हो गया?”
माता-पिता ने जवाब दिया, “बेटा, तूने हमसे बिना पूछे विवाह कर लिया। हमें तो यह भी खबर नहीं दी कि तू शादी करने जा रहा है। अगर तू हमें बता देता, तो हम खुशी-खुशी तेरे विवाह में शामिल होते और अपनी बहू को खुद लेकर आते।”
दोस्तों, यह सच है कि हर माता-पिता का सपना होता है कि वे अपने बेटे का विवाह अपनी आंखों से देखें और अपनी इच्छाओं को पूरा करें। राम सिंह और उनकी पत्नी भी यही चाहते थे कि वे अपने बेटे के विवाह में शामिल होते और अपनी बहू को खुशी-खुशी घर लाते।
लेकिन माता-पिता के लिए सबसे बड़ा दुख तब होता है जब उनकी औलाद उनकी मर्जी के खिलाफ विवाह कर लेती है। ऐसे समय में माता-पिता के अरमान टूट जाते हैं, क्योंकि वे अपने बेटे का विवाह अपनी परंपराओं और इच्छाओं के अनुसार करना चाहते हैं। जब औलाद उनकी बात नहीं मानती, तो उन्हें भीतर से गहरा कष्ट होता है।
राम सिंह और उनकी पत्नी ने अपने बेटे से कहा, “बेटा, जो होना था वह तो हो गया। कोई बात नहीं।”
अब तुमने हमें नहीं बुलाया, यह भी ठीक है। लेकिन तुम लोग खुश रहो, हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। बेटा और बहू कुछ दिन गांव में रुके। इस दौरान वे अपने माता-पिता के साथ समय बिताते रहे। एक दिन बेटे ने अपने माता-पिता से कहा, “मां, पिताजी, अब मुझे शहर लौटना होगा। मैंने छुट्टी ली थी, लेकिन अब ड्यूटी का समय हो गया है। और हां, मैं चाहता हूं कि आप दोनों हमारे साथ शहर चलें और वहीं हमारे साथ रहें।”
राम सिंह और उनकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “बेटा, तुम लोग खुश रहो, यही हमारे लिए सबसे बड़ी बात है। हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। लेकिन अभी हमारे शरीर में जान है और हमें गांव में ही रहना अच्छा लगता है। यहां हमारी थोड़ी सी जमीन है और गांव का वातावरण हमें पसंद है। हमने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया है। हमें शहर का माहौल रास नहीं आता। इसलिए तुम लोग आराम से जाओ, प्रेम से रहो और अपना ध्यान रखो।”
दोस्तों, माता-पिता का प्रेम और आशीर्वाद हमेशा निस्वार्थ होता है। वे अपनी खुशी को त्याग कर अपनी औलाद की खुशी के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। राम सिंह और उनकी पत्नी ने भी यही किया। उन्होंने अपने बेटे और बहू को विदा किया, लेकिन अपने गांव में ही रहना पसंद किया, जहां उनकी जड़ें थीं और उनका मन बसता था। अपने माता-पिता से मिलने के बाद राम सिंह का बेटा अपनी पत्नी के साथ शहर लौट आया और वहीं रहने लगा। इधर राम सिंह और उनकी पत्नी गांव में खुश थे।
राम सिंह अक्सर अपनी पत्नी से कहते, “देखो, हमारी बहू कितनी सुंदर और पढ़ी-लिखी है। जैसा हम चाहते थे, वैसे ही हमारे बेटे ने विवाह किया। उसने हमें नहीं बुलाया, कोई बात नहीं। लेकिन हमारी बहू बहुत अच्छी है।” धीरे-धीरे समय गुजरता गया। कुछ समय बाद राम सिंह के बेटे के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। यानी राम सिंह दादा बन गए। लेकिन राम सिंह का बेटा अपनी व्यस्तता के कारण अपने माता-पिता को यह खुशखबरी देना भी भूल गया।
माता-पिता को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी। किसी तरह गांव में खबर पहुंची कि राम सिंह का पोता हुआ है। यह सुनकर राम सिंह और उनकी पत्नी बेहद खुश हुए। राम सिंह ने तुरंत अपने बेटे को चिट्ठी लिखी। उसमें उन्होंने लिखा, “बेटा, हमें यह खबर मिली कि हमारा पोता हुआ है। लेकिन तुमने हमें खबर तक नहीं दी। अरे, किसी तरह कम से कम एक दिन के लिए ही सही, हमारे पोते को लेकर आओ। हम उसके दर्शन करना चाहते हैं। बेटा, हर दादा-दादी के लिए पोते से बढ़कर कुछ नहीं होता।”
राम सिंह और उनकी पत्नी पोते के दर्शन की आस में खुश रहने लगे। लेकिन बेटे की ओर से कोई जवाब नहीं आया। वह इतना व्यस्त हो गया था कि माता-पिता को चिट्ठी का जवाब देने की भी फुर्सत नहीं मिली। राम सिंह और उनकी पत्नी हर दिन उम्मीद करते कि उनका बेटा पोते को लेकर आएगा। उनकी आंखें गांव की राहों पर लगी रहतीं। राम सिंह की पत्नी ने एक दिन कहा, “चलो, खुद ही शहर चलकर पोते को देख आते हैं।” लेकिन राम सिंह ने मना कर दिया और कहा, “हमारा बेटा खुद आएगा। यहां खेती का ध्यान रखना भी जरूरी है। अगर एक रात के लिए भी चले गए तो जानवर फसल बर्बाद कर देंगे।” इस तरह राम सिंह ने शहर जाने से इंकार कर दिया। हालांकि उनका दिल यह चाह रहा था कि पोते को देखने की खुशी उन्हें जल्द ही मिले। लेकिन उनकी उम्मीदों पर बेटे की बेरुखी भारी पड़ने लगी।
राम सिंह का बेटा अपने माता-पिता को देखने के लिए कभी नहीं आया। इधर राम सिंह और उनकी पत्नी अपने बेटे और पोते के इंतजार में दिन-रात राह तकते रहे। धीरे-धीरे समय गुजरता गया। एक दिन राम सिंह की पत्नी बीमार पड़ गई। राम सिंह ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया और इलाज कराना शुरू किया। हालांकि इलाज के लिए पैसों की जरूरत पड़ी और राम सिंह के पास इतने पैसे नहीं थे। उसने अपने बेटे को चिट्ठी लिखी, जिसमें उसने कहा, “बेटा, तुम्हारी मां बहुत बीमार है। उसे देखने के लिए आओ और कुछ पैसे भी लेकर आओ ताकि उसका इलाज अच्छे से हो सके।”
जब चिट्ठी बेटे तक पहुंची तो उसने जवाब में लिखा, “पिताजी, अगर पैसों की कमी है तो किसी से उधार ले लीजिए। मैं बाद में आकर चुका दूंगा। अभी मैं बहुत व्यस्त हूं।” जब राम सिंह ने यह जवाब पढ़ा तो उसका दिल टूट गया। उसने सोचा, “क्या हर माता-पिता इसलिए अपने बच्चों को पालते हैं कि बुढ़ापे में वे उनका साथ छोड़ दें? जब दुख और परेशानी आए तो औलाद उनके काम ना आए?” फिर भी जैसे-तैसे राम सिंह ने उधार लेकर अपनी पत्नी का इलाज जारी रखा। लेकिन उनकी पत्नी की तबीयत में सुधार नहीं हुआ। अंततः वह घर वापस आ गए और एक दिन राम सिंह की पत्नी का देहांत हो गया।
अपनी पत्नी की मौत के बाद राम सिंह पूरी तरह टूट गए। वह सोचते रहे, “आज मेरी पत्नी दुनिया से चली गई। लेकिन हमारा बेटा हमें देखने तक नहीं आया। उसे अपनी मां की कोई फिक्र नहीं हुई।” राम सिंह ने अकेले ही अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया। वह अब पूरी तरह अकेले हो गए। अपने घर में रात को वह फूट-फूट कर रोते और सुबह अपने खेतों में काम पर चले जाते।
दोस्तों, कहते हैं कि माता-पिता के लिए बच्चों का बहुत व्यस्त होना सही नहीं है। इतनी व्यस्तता भी ठीक नहीं कि औलाद अपने माता-पिता का दुख ना देख सके और उनका साथ छोड़ दे। ऐसी औलाद के लिए धिक्कार है, जो अपने माता-पिता की सेवा ना करे और उन्हें भूल जाए। राम सिंह का अकेलापन और बेटे की बेरुखी हमें यह सीख देती है कि जीवन में चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, अपने माता-पिता के लिए समय निकालना सबसे बड़ा कर्तव्य है। ऐसी औलाद जो अपने माता-पिता को दुख में छोड़ दे, समाज में कभी सम्मान नहीं पाती।
दोस्तों, राम सिंह का बेटा जब यह सुनता है कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही, तो वह अपनी पत्नी और बच्चे के साथ तुरंत अपने पिता के पास आता है। वह अपने पिता के चरणों में गिर जाता है और फूट-फूट कर रोने लगता है। वह कहता है, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। हम कितनी बुरी औलाद हैं, जो अपनी मां को इस समय में नहीं देख पाए। मैं इतना व्यस्त हो गया कि अपनी मां की परेशानी और दुख भूल गया।”
राम सिंह का बेटा इस पछतावे में इतना टूट जाता है कि वह बार-बार रोते हुए अपने पिता से माफी मांगता है। लेकिन राम सिंह उसे शांत करते हुए कहते हैं, “बेटा, अब क्यों रो रहे हो? तुम्हारी मां तो इस दुनिया से जा चुकी है। अब वह कभी वापस नहीं आएगी। तुम्हारी मां के पास एक दुख था और उस दुख में उसने अपने प्राण त्याग दिए। वह अपने पोते के दर्शन करना चाहती थी। लेकिन तुम उसे लेकर नहीं आए। तुमने उसकी एक इच्छा पूरी नहीं की।”
पिता के यह शब्द सुनकर बेटा बहुत ही दुखी और पछताया हुआ महसूस करता है। वह समझ जाता है कि उसने अपने माता-पिता की उपेक्षा की थी और अब उसका पछतावा कोई काम नहीं आ सकता। फिर भी राम सिंह का बेटा अपने पिता से कहता है, “पिताजी, अब आप बिल्कुल अकेले हो गए हैं और आपका शरीर भी कमजोर हो गया है। हमारी इच्छा है कि आप हमारे साथ शहर में चलें। इस खेती के लिए किसी को पैसे देकर यह कार्य खत्म करवा लें और फिर आप हमारे साथ शहर में रहिए। मैं कोशिश करूंगा कि आपकी सेवा कर सकूं और आपको सुख दे सकूं।”
राम सिंह शुरू में इस प्रस्ताव को नहीं मानते। लेकिन बेटे के लगातार आग्रह करने पर राम सिंह को अंततः यह स्वीकार करना पड़ता है। वह खेती के लिए किसी को पैसे देकर काम पूरा करवा देते हैं और फिर बेटे के साथ शहर जाने का निर्णय लेते हैं। सुबह वह शहर के लिए निकल जाते हैं।
दोस्तों, राम सिंह अब अपने बेटे, बहू और पोते के साथ रहने लगे।
कुछ दिनों तक रामसिंह की बहू ने उनकी सेवा की, लेकिन धीरे-धीरे वह अपने ससुर से चिढ़ने लगी। रामसिंह का पोता अपने दादा से बेहद प्यार करता था, और रामसिंह भी उसे बहुत स्नेह करते थे। दोनों अक्सर एक ही टेबल पर बैठकर भोजन करते थे। कभी-कभी रामसिंह अपने बेटे और बहू के साथ भी खाना खाते थे। लेकिन उम्र के साथ रामसिंह का शरीर कमजोर हो चुका था। उनके गालों पर झुर्रियां पड़ गई थीं, हड्डियां सूख चुकी थीं, और चलने-फिरने में उन्हें काफी दिक्कत होती थी। उनकी आंखों की रोशनी भी बहुत कम हो चुकी थी।
एक दिन रामसिंह अपने पोते के साथ भोजन कर रहे थे। मटर का दाना उठाकर निवाले में रखने की कोशिश में वह दाना उनके हाथ से गिर गया, और कई मटर के दाने जमीन पर बिखर गए। यह देख उनकी बहू को गुस्सा आ गया। उसने झल्लाते हुए कहा, “बूढ़ा आदमी क्या गंदगी कर रहा है!”
कुछ देर बाद रामसिंह ने पानी पीने के लिए कांच का गिलास उठाया, लेकिन गलती से वह गिलास फर्श पर गिरकर टूट गया। बहू तुरंत दौड़कर आई, टूटे हुए कांच के टुकड़े इकट्ठा किए, और उन्हें कूड़े में फेंक दिया। धीरे-धीरे यह आम बात हो गई कि जब भी रामसिंह भोजन के लिए बैठते, कुछ न कुछ गिर जाता या टूट जाता। यह देखकर बहू की चिढ़ बढ़ती जा रही थी। उसने एक दिन अपने पति से कहा, “देखिए, आपके पिताजी अब बहुत नुकसान कर रहे हैं। रोज कोई न कोई बर्तन तोड़ देते हैं। अब मुझसे यह सब सहन नहीं होता। इनका कुछ इंतजाम कीजिए।”
रामसिंह का बेटा अपनी पत्नी की बात सुनकर परेशान हो गया। उसने कहा, “तुम सही कह रही हो। अगर ऐसा चलता रहा, तो एक दिन सारे बर्तन बर्बाद हो जाएंगे।” इसके बाद उसने घर के कोने में एक पुरानी लकड़ी की टेबल रखी और लकड़ी के बर्तन मंगवाए। उसने अपने बूढ़े पिता को वहां बैठाया और कहा, “अब से तुम यहीं बैठकर भोजन करोगे। इन लकड़ी के बर्तनों में खाना खाओ, क्योंकि तुम रोज बर्तन गिराते हो और नुकसान करते हो। अगर ये बर्तन गिर भी गए, तो कोई नुकसान नहीं होगा।”
रामसिंह की आंखों में आंसू थे, लेकिन बहू और बेटे पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। दूसरी ओर, बेटा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ शानदार टेबल पर बैठकर स्वादिष्ट भोजन कर रहा था। वहीं, रामसिंह अकेले लकड़ी की पुरानी टेबल पर बैठे, लकड़ी के बर्तनों में खाना खा रहे थे। उनकी कमजोर आंखें मुश्किल से देख पाती थीं, लेकिन बेटे और बहू की ओर नजर डालते ही उनकी आंखें भर आती थीं। ये आंसू दर्द और उपेक्षा का प्रतीक थे, लेकिन किसी को उनकी परवाह नहीं थी।
रामसिंह का पोता, जो अपने दादा की यह स्थिति देख रहा था, बहुत दुखी हो गया। उसने अपना खाना बीच में ही छोड़ दिया। जब उसके पिता ने पूछा, “बेटा, क्यों खाना नहीं खा रहे? खाओ ना।” तो उसने जवाब दिया, “नहीं पापा, मेरा पेट भर गया है। आप लोग खाइए।”
असल में, उसका पेट भरा नहीं था। वह अपने दादा के साथ हो रहे अन्याय को देखकर अंदर से टूट चुका था। वह छोटा बच्चा अपनी उम्र की वजह से कुछ कर पाने में असमर्थ था, लेकिन उसके मन में दादा के लिए गहरा दर्द था।
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि छोटी-छोटी घटनाएं हमारी मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों के महत्व को उजागर करती हैं। सोचिए, क्या हम अपने बड़े-बुजुर्गों के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहेंगे?
दोस्तों, जब हमारे माता-पिता बुजुर्ग होकर अकेलेपन और उपेक्षा का सामना करते हैं, तो यह बच्चों के दिल को गहरी चोट पहुंचाता है। राम सिंह के पोते ने जब अपने दादा की पीड़ा देखी, तो वह चुपके से उनके पास गया, उनसे लिपटकर रोने लगा। उसने कहा, “दादा, माफ करना। हमारे माता-पिता आपको बहुत कष्ट देते हैं, लेकिन आप चिंता मत कीजिए। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो आपकी खूब सेवा करूंगा।”
राम सिंह अपने पोते के मासूम और भावुक शब्द सुनकर उसे अपनी छाती से लगा लेते हैं। उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं, और वह पोते को बार-बार आशीर्वाद देते हुए कहते हैं, “बेटा, तुम हमेशा खुश रहो।” बड़े-बुजुर्गों की दुआओं में अद्भुत ताकत होती है। भगवान उनकी सच्चे दिल से निकली प्रार्थनाओं को कभी व्यर्थ नहीं जाने देते।
समय धीरे-धीरे बीतता है। एक दिन राम सिंह का पोता लकड़ी के बर्तन बनाने में मग्न था। उसने एक लकड़ी का कटोरा तैयार किया। जब उसकी मां ने यह देखा, तो वह हैरान होकर पूछ बैठी, “बेटा, यह क्या कर रहे हो?” पोते ने मासूमियत से जवाब दिया, “मां, जब आप और पापा बूढ़े हो जाओगे, तो आप दोनों के लिए इसी लकड़ी के कटोरे में खाना परोसूंगा, जैसे आप दादा को देते हो।”
यह सुनकर उसकी मां सन्न रह गई। उसने तुरंत अपने पति को बुलाया। जब उसने बेटे के मुंह से यह बात सुनी, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। दोनों शर्मिंदा होकर गहरी सोच में पड़ गए।
राम सिंह का बेटा अपने बच्चे के पास गया और पूछा, “बेटा, यह तुम क्या कर रहे हो?” बच्चे ने सरलता से जवाब दिया, “पिताजी, यह कटोरा मैं आप दोनों के लिए बना रहा हूं। जब आप दादा की तरह बूढ़े हो जाओगे, तो इसमें खाना दूंगा।”
बच्चे की बात सुनकर राम सिंह का बेटा और बहू स्तब्ध रह गए। उन्हें एहसास हुआ कि उनका बच्चा उनके व्यवहार को देख रहा है और वही सीख रहा है। बच्चे की मासूम बातों ने उनके दिल को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने अपनी गलती का एहसास किया और शर्म से सिर झुका लिया।
इसके बाद, पति-पत्नी ने विचार किया और कहा, “हमने अपने पिता के साथ बहुत गलत किया। अगर हम इसी तरह व्यवहार करेंगे, तो भविष्य में हमारा बेटा भी हमारे साथ ऐसा ही करेगा।”
उन्होंने तुरंत अपने व्यवहार को बदलने का फैसला किया। राम सिंह के पास जाकर माफी मांगी और कहा, “पिताजी, हमें माफ कर दीजिए। हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है। आज के बाद हम आपको वह सम्मान और प्यार देंगे, जो आपका हक है।”
राम सिंह ने अपने बेटे और बहू को गले से लगा लिया और दिल से आशीर्वाद दिया। इसके बाद, राम सिंह का बेटा और बहू पूरी तरह बदल गए। उन्होंने अपने पिता को वह सम्मान और प्यार दिया, जिसकी उन्हें जरूरत थी।
अब वे तन-मन से राम सिंह की सेवा करने लगे। राम सिंह भी अपने बच्चों के बदले हुए व्यवहार से बेहद खुश हो गए और उन्हें दिल से आशीर्वाद देने लगे।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि बच्चों के सामने हमारा व्यवहार ही उनके लिए सीख बनता है। इसलिए हमें अपने माता-पिता के साथ हमेशा प्यार और सम्मान से पेश आना चाहिए।
उन्होंने महसूस किया कि जो सुख और शांति उन्हें अपने पिता की सेवा से मिली, वह दुनिया की किसी और चीज में नहीं थी। वे हर दिन अपने पिता की जरूरतों का ध्यान रखने लगे और उनका मान-सम्मान करने लगे। राम सिंह, जो पहले अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार थे, अब परिवार के बीच बेहद खुश रहने लगे। उनका पोता भी अपने दादा के इस बदले हुए जीवन को देखकर बहुत खुश था। वह अक्सर अपने दादा के पास बैठता, उनसे कहानियां सुनता और उनके साथ वक्त बिताता।
परिवार में आए बदलाव की झलक धीरे-धीरे पूरे घर में नजर आने लगी। अब परिवार में एक नई ऊर्जा, प्यार और शांति का माहौल बन गया। राम सिंह का बेटा और बहू समझ चुके थे कि बुजुर्गों की सेवा न केवल उनके आशीर्वाद का मार्ग है, बल्कि बच्चों के लिए एक बेहतर उदाहरण भी पेश करती है। उनकी यह समझदारी केवल घर तक सीमित नहीं रही। उन्होंने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरित करना शुरू किया।
उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को समझाया कि माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। उनकी बातों का असर हुआ, और कई लोगों ने अपने माता-पिता के प्रति अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को बदलना शुरू कर दिया। राम सिंह के बेटे ने अपने पिता के लिए एक छोटी सी पूजा रखी, जिसमें उसने सबके सामने कहा, “आज मुझे समझ आया कि माता-पिता भगवान के समान हैं। उनकी सेवा करना हमारा पहला धर्म होना चाहिए। मैं यह वचन देता हूं कि आज के बाद मैं अपनी हर खुशी अपने पिता के साथ बांटूंगा।”
उस दिन पूरे परिवार ने साथ में भोजन किया। यह वही टेबल थी, जहां पहले राम सिंह को अलग-थलग रखा जाता था। अब वह परिवार के केंद्र में थे और हर सदस्य उन्हें सम्मान और प्यार दे रहा था।
कहानी की सीख
इस कहानी का मुख्य संदेश यह है कि माता-पिता हमारे जीवन की जड़ हैं। जैसे पेड़ अपनी जड़ों से पोषण पाता है, वैसे ही हम अपने बुजुर्गों से ताकत और प्रेरणा प्राप्त करते हैं। अगर हम अपनी जड़ों को काट देंगे, तो हमारा जीवन भी सूख जाएगा।
याद रखें, बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं। अगर आप अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे, तो आपकी औलाद भी आपके साथ वैसा ही करेगी। इसलिए माता-पिता का आदर करें, उनकी सेवा करें और उन्हें वह खुशी दें, जिसके वे हकदार हैं।
उनकी दुआएं ही आपके जीवन को सफल और समृद्ध बना सकती हैं। यह कहानी हमें हमारे कर्तव्य और रिश्तों की अहमियत का पाठ पढ़ाती है। अगर आप चाहते हैं कि आपका बुढ़ापा सुखद और शांतिपूर्ण हो, तो आज ही अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करें। उन्हें कभी उपेक्षा का अनुभव न होने दें।
याद रखें, बड़ों की दुआओं में बहुत शक्ति होती है। उनके आशीर्वाद से आपका जीवन खुशहाल और समृद्ध होगा। उनकी सेवा में ही असली सुख है। यही इस कहानी का मूल संदेश है।
दोस्तों इस कहानी को सांझा करने का मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना या किसी को आहत करना नहीं है मेरा मकसद सिर्फ आपको जागरूक सतर्क और सचेत करना है
आपकी क्या राय है कृपया अपनी ईमानदार राय कमेंट बॉक्स में जरूर सांझा करें जहां भी रहे सतर्क रहें और सुरक्षित रहे आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद