
अपनी जिंदगी की कहानी में मैं बताना चाहता हूं कि कैसे मैं अपराध की दुनिया में फंसा और फिर कैसे मैंने उससे बाहर निकलने का रास्ता खोजा। चलिए, कहानी की शुरुआत करते हैं।
सितंबर में लोकेश पहली बार छत्तीसगढ़ से दिल्ली आया। उसके मन में सिर्फ एक ही योजना थी—एक बड़ी ज्वेलरी शॉप को निशाना बनाकर चोरी को अंजाम देना। दिल्ली की सड़कों पर घूमते हुए वह लगातार उन बाजारों की तलाश करता रहा जहां नामी और महंगी ज्वेलरी शॉप्स मौजूद थीं। उसने सबसे पहले दिल्ली के प्रमुख ज्वेलरी मार्केट्स की जानकारी जुटाई और फिर कई दिनों तक उन दुकानों की रैकी की।
लोकेश ने हर छोटी-बड़ी बात पर ध्यान दिया, जैसे दुकान के अंदर और बाहर की सुरक्षा व्यवस्था, स्टाफ की गतिविधियां, और वह समय जब दुकान में सबसे ज्यादा भीड़ या सबसे कम सुरक्षा होती थी। कुछ दिनों की तैयारी के बाद उसने एक ऐसी ज्वेलरी शॉप को चुना, जहां उसे लगा कि वह आसानी से चोरी कर सकता है।
उसके दिमाग में उस समय कई बातें चल रही थीं। उसे ऐसी दुकान की तलाश थी, जहां आसपास कम सीसीटीवी कैमरे हों और रात के वक्त इलाके में सन्नाटा रहता हो। वह ऐसी जगह ढूंढ रहा था, जहां लोग देर तक जागते न हों और गहमा-गहमी भी कम हो। इसी बीच उसे एक शख्स से जानकारी मिली कि दिल्ली के भोगल मार्केट में कई ज्वेलरी शॉप्स हैं, और यह जगह उसकी योजना के लिए उपयुक्त हो सकती है।
लोकेश ने तुरंत गूगल मैप्स की मदद ली और भोगल मार्केट पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने बाजार का जायजा लिया और ज्वेलरी शॉप्स पर नजर रखी। कई दुकानों की रैकी करने के बाद उसकी नजर उमराव ज्वेलर्स पर पड़ी और उसने इस दुकान को अपना फाइनल टारगेट बना लिया।
अब लोकेश की योजना और अधिक ठोस हो चुकी थी। उसने उमराव ज्वेलर्स के आसपास की सुरक्षा का बारीकी से निरीक्षण किया। इसके बाद, वह रात को वापस आया ताकि यह समझ सके कि रात के समय इलाके में कितनी हलचल रहती है, कितने लोग आते-जाते हैं, और कब तक वहां सन्नाटा छा जाता है। उसने यह भी ध्यान दिया कि दुकान के आसपास रात में कोई टहलने वाला या संदिग्ध व्यक्ति तो नहीं होता।
अगले दिन, जब वह फिर से उमराव ज्वेलर्स के पास पहुंचा, तो उसने देखा कि दुकान के अंदर ऊपर से एक सीढ़ी नीचे आ रही थी। लोग नीचे से ऊपर जा रहे थे, जिससे उसे अंदाजा हुआ कि दुकान के अंदर कहीं ऊपर भी कोई रास्ता है। लेकिन वह यह समझ नहीं पा रहा था कि यह सीढ़ी कहां से आ रही है। इसे समझने के लिए उसने कुछ लोगों से बातचीत की ताकि दुकान के पूरे सेटअप और ऊपर के हिस्से के बारे में जानकारी हासिल कर सके।
लोकेश ने अपनी योजना को और पुख्ता करने के लिए एक रणनीति तैयार की। उसने उमराव ज्वेलर्स के आसपास लोगों से इस तरह बात की जैसे उसे किराए पर घर चाहिए। बातचीत के दौरान किसी ने उसे बताया कि जिस बिल्डिंग में उमराव ज्वेलर्स है, उसमें अलग-अलग फ्लोर पर अलग-अलग परिवार रहते हैं। बिल्डिंग में चार फ्लोर थे और हर फ्लोर का मालिक अलग था। इस जानकारी ने लोकेश को भरोसा दिलाया कि बिल्डिंग के अंदर घुसने में ज्यादा जोखिम नहीं होगा।
इसके बाद उसने सोचा कि वह सीढ़ियों पर चढ़कर एक बार अंदर का जायजा ले ले। अगर कोई उसे रोकेगा तो वह कह देगा कि वह किसी को ढूंढने आया है। इसी सोच के साथ उसने बिल्डिंग की सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू किया। उसने पहला फ्लोर, दूसरा फ्लोर, तीसरा फ्लोर और फिर चौथा फ्लोर पार कर लिया। लेकिन किसी ने उसे नहीं रोका। सभी दरवाजे बंद थे और उसे लगा कि यह जगह उसके लिए सही है। वह वापस चला गया, लेकिन रात में फिर लौट आया।
रात के समय उसने देखा कि गेट बंद नहीं होता था और ताला तो लगाना दूर की बात थी। हालांकि बिल्डिंग में कई परिवार रहते थे, लेकिन वहां कोई गार्ड नहीं था जो रात के वक्त पहरा दे। उसने यह भी देखा कि सीढ़ी हमेशा खुली रहती थी और इसे कोई बंद नहीं करता था। यह सब देखकर उसे यकीन हो गया कि उसकी योजना सफल हो सकती है।
इसके बाद उसने कई बार उस इलाके का चक्कर लगाया और सारी सुरक्षा व्यवस्थाओं को ध्यान से देखा। उसने पूरी योजना का नक्शा अपने दिमाग में बना लिया। जब उसने देखा कि रात के वक्त पूरा भोगल मार्केट बंद हो जाता है और सुरक्षा में ढिलाई रहती है, तो उसने तय किया कि वह सोमवार की रात को चोरी को अंजाम देगा, क्योंकि उस दिन उसे सबसे कम जोखिम लग रहा था।
लोकेश को इस बात का डर था कि अगर वह रात के समय लाकर तोड़ने की कोशिश करेगा तो खटपट की आवाज से पड़ोसियों या बाहर किसी को शक हो सकता है। इसलिए उसने अपनी योजना में बदलाव किया और तय किया कि वह रात को कोई हरकत नहीं करेगा। इसके बजाय वह शोरूम के अंदर ही सो गया ताकि सुबह वह बिना किसी डर के अपना काम कर सके।
सोमवार की सुबह लगभग 11 बजे वह जागा। उसने फिर से अपने साथ लाए खाने को खाया और पानी पिया। फिर अपने असली काम में जुट गया। बाहर गाड़ियों और हॉर्न की आवाजें आने लगी थीं, जिससे उसे यकीन हो गया कि अब वह आराम से लाकर तोड़ सकता है। दिन में होने वाले शोर के बीच उसकी गतिविधियों पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा।
अब उसने एक-एक करके शोरूम के लाकर और अलमारियों को तोड़ना शुरू किया। उसने केवल कीमती पत्थर और सोने के जेवर उठाए, जबकि चांदी के गहनों को उसने नजरअंदाज कर दिया। उसका मकसद केवल उच्च मूल्य वाले सामान पर हाथ साफ करना था। उसे यह सब करने में काफी समय लगा और शाम होने तक वह सारे कीमती सामान इकट्ठा कर चुका था।
जब अंधेरा होने लगा, लोकेश ने सारा सामान अपने बैग में रखा और थोड़ी देर इंतजार किया ताकि कोई उसे देख न सके। करीब 7 बजे वह दबे पांव सीढ़ियों से ऊपर चढ़ा और फिर बेखौफ होकर नीचे उतर आया। बैग में भरे सारे जेवर लेकर उसने कुछ दूरी तय की और फिर एक ऑटो रिक्शा पकड़कर वहां से फरार हो गया। अपनी सबसे बड़ी चोरी को अंजाम देकर वह कश्मीरी गेट बस अड्डे पर पहुंचा और छत्तीसगढ़ के लिए सीधी बस पकड़कर अपने घर लौट आया।
घर पहुंचते ही उसने अपने एक करीबी दोस्त को बुलाया और चोरी का बैग खोलकर उसे दिखाया। जब उसके दोस्त ने बैग में भरे इतने सारे सोने के जेवर देखे, तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। लोकेश ने गर्व से दो मोटी सोने की चेन निकाली और अपने दोस्त को देते हुए कहा, “ले, यह तेरे लिए। बहुत बड़ा काम करके आया हूं और अब से चोरी बंद। यह मेरी जिंदगी की आखिरी चोरी है। अब मेरे पास इतने पैसे आ गए हैं कि मैं पूरी जिंदगी आराम से बिता सकता हूं।”
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जिस दोस्त को उसने सोने की चेन दी थी, उसने यह बात अपने एक और दोस्त को बता दी। जब उस दूसरे दोस्त को पता चला कि लोकेश ने इतनी बड़ी चोरी की है और वह इतनी संपत्ति का मालिक बन गया है, तो उसे लोकेश से जलन होने लगी। जलन के कारण उसने पुलिस को गुप्त रूप से सूचना दे दी कि लोकेश ने दिल्ली से बड़ी चोरी की है और उसके पास चोरी का माल है।
सूचना मिलते ही पुलिस ने लोकेश को ट्रैक किया और उसके घर पहुंच गई। पुलिस ने लोकेश को गिरफ्तार कर लिया और उसके पास से सारे चोरी किए गए गहने भी बरामद कर लिए। जब लोकेश को अदालत में पेश किया गया, तो उसने जज के सामने रोते हुए कहा, “अगर मेरे दोस्त ने मुझे धोखा नहीं दिया होता, तो मैं कभी पकड़ा नहीं जाता।” यह कहते हुए लोकेश अदालत में जोर-जोर से रोने लगा।
लोकेश के अदालत में रोते हुए बयान ने सभी को हैरान कर दिया, लेकिन जज ने उसकी भावनाओं के बावजूद कानून के अनुसार कार्रवाई की। लोकेश की चोरी के बारे में सबूत पक्के थे, और उसे उसके अपराध की सजा दी गई।
उसके पास से बरामद हुए जेवरात, उसकी दोस्त की गवाही और सीसीटीवी फुटेज ने उसके अपराध की पुष्टि कर दी। जज ने उसकी बातों को ध्यान से सुना, लेकिन यह भी स्पष्ट था कि लोकेश ने गंभीर अपराध किया था। कोर्ट में गवाहों के बयान और सबूतों के आधार पर जज ने लोकेश को दोषी ठहराया और उसे कठोर सजा सुनाई। लोकेश को कई वर्षों की कैद दी गई और चोरी के सभी गहने जब्त कर लिए गए। उसकी सारी योजनाएं और भविष्य के सपने चकनाचूर हो गए।
जिस दोस्त पर उसने भरोसा किया था, उसी की गद्दारी ने उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। जब लोकेश को यह पता चला कि उसके दोस्त ने ही उसे धोखा देकर पुलिस को सूचना दी थी, तो वह बेहद गुस्से और दुख में डूब गया। जेल में रहते हुए वह बार-बार सोचता रहा कि जिस दोस्त पर उसने सबसे अधिक भरोसा किया था, उसी ने उसे धोखा दिया। शुरुआत में वह अपने दोस्त के खिलाफ काफी नाराज था और मानता था कि अगर उसने ऐसा नहीं किया होता, तो वह कभी पकड़ा नहीं जाता।
हालांकि, समय के साथ जब लोकेश ने जेल में अपने किए अपराधों पर विचार किया और अपनी गलतियों को समझा, तो उसकी सोच में बदलाव आया। उसने महसूस किया कि असल में गलती उसकी ही थी, क्योंकि उसने चोरी जैसा अपराध किया था। भले ही उसका दोस्त लालच और जलन में आकर पुलिस को सूचना देने वाला बना, लेकिन अंततः वह खुद ही अपने कर्मों की सजा भुगत रहा था।
जेल में उसने अपने साथी कैदियों से कहा, “दोस्त ने धोखा दिया, यह सच है। लेकिन अगर मैंने चोरी न की होती, तो यह सब कभी नहीं होता। उसने मुझे पकड़वाया, मगर असल में मेरी ही गलतियां मुझे यहां तक लाई हैं। अब मैं किसी को दोष नहीं देता। मैंने जो किया, उसका नतीजा यही होना था।” इस सोच ने उसे अपने गुस्से और नफरत से बाहर निकलने में मदद की और उसने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया, बिना किसी से बदला लेने या पुराने रिश्तों को लेकर कड़वाहट पालने के।
जेल में रहते हुए लोकेश को समय-समय पर पछतावा होता कि उसने अपनी जिंदगी गलत राह पर क्यों डाली। उसने खुद से वादा किया कि वह कभी चोरी नहीं करेगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसकी आखिरी चोरी ही उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। जेल के सालों में उसे यह एहसास हुआ कि अपराध का रास्ता कभी सही नहीं होता। एक झूठी सफलता की लालसा ने उसे अपने ही जीवन से दूर कर दिया था।
कई सालों बाद जब लोकेश जेल से बाहर आया, तो वह बिल्कुल बदला हुआ इंसान था। उसने ठान लिया था कि अब वह अपराध के बजाय समाज के लिए कुछ अच्छा करेगा। अपने अनुभवों से उसने सीखा कि ईमानदारी से जीना ही असली सफलता है। जेल से बाहर आने के बाद लोकेश ने अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने का फैसला किया। उसने तय किया कि अब वह किसी भी गलत काम में शामिल नहीं होगा और अपनी गलतियों से सीखे हुए सबक को दूसरों के साथ साझा करेगा।
हालांकि, समाज में खुद को फिर से स्थापित करना उसके लिए आसान नहीं था। लोग उसे उसके पुराने अपराधों के लिए जानते थे और उसका नाम बदनाम हो चुका था। नौकरी पाना मुश्किल था और लोग उस पर भरोसा नहीं करते थे। लेकिन लोकेश ने हार नहीं मानी। उसने अपनी सच्चाई और मेहनत से धीरे-धीरे लोगों का विश्वास जीतने की कोशिश की। उसने यह साबित कर दिया कि जीवन में सुधार संभव है, बस इरादा मजबूत होना चाहिए।
लोकेश ने हार मानने के बजाय एक सामाजिक संस्था से जुड़ने का निर्णय लिया, जो जेल से बाहर आए अपराधियों को समाज में फिर से बसने में मदद करती थी। इस संस्था में काम करते हुए उसने अपने जैसे हालातों में फंसे कई लोगों को देखा और उन्हें सही मार्ग पर लाने का प्रयास किया। वह युवाओं को समझाने लगा कि अपराध की दुनिया में जाने से उनका जीवन कैसे बर्बाद हो सकता है। धीरे-धीरे लोगों का विश्वास उस पर लौटने लगा। उसने छोटे-मोटे कामों से अपनी आजीविका शुरू की और ईमानदारी का रास्ता अपनाया।
लोकेश का एकमात्र उद्देश्य अब यही था कि वह अपनी जीवन की गलतियों से दूसरों को बचा सके। उसने अपराध छोड़कर एक नई शुरुआत की और समाज में अपनी सकारात्मक पहचान बनाई। अपने अनुभवों को उसने एक किताब में साझा किया, जिसमें उसने बताया कि वह अपराध की दुनिया में कैसे फंसा और कैसे उसने उससे बाहर निकलने का रास्ता खोजा। उसकी किताब को काफी सराहना मिली और उसे कई बार युवाओं के लिए प्रेरक वक्ता के रूप में बुलाया जाने लगा।
समय के साथ लोकेश ने अपनी एक छोटी सी दुकान खोली और सादगी से जीवन बिताने लगा। उसने समाज के उन लोगों की मदद करना भी जारी रखा, जो गलत रास्ते पर जाने से पहले खुद को संभाल सकते थे। लोकेश की कहानी अब सिर्फ एक अपराधी की कहानी नहीं थी, बल्कि बदलाव और नई शुरुआत की मिसाल बन चुकी थी।
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