पत्नी कलेक्टर बनकर गांव लौटी, पति कर रहा था दूसरी शादी

दोस्तों, संजना डिप्टी कलेक्टर बनकर अपने गांव लौट रही थी। ट्रेन में बैठी हुई वह अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष के दिनों को याद कर रही थी। पूरे पांच साल बीत चुके थे जब संजना ने अपने गांव की धरती पर कदम रखा था। लेकिन आज, इतने वर्षों बाद, वह अपने गांव जाकर अपने पति और बुजुर्ग माता-पिता से मिलने वाली थी।

संजना ने यह सरप्राइज उन्हें देने की ठानी थी कि अब वह एक डिप्टी कलेक्टर बन चुकी है। इन पांच वर्षों में उसने दिन-रात मेहनत की, अपनी नींद और आराम को त्याग दिया। एक गरीब किसान की बेटी होने के बावजूद, उसने अपने सपनों को साकार किया और आज इस मुकाम पर पहुंची।

यात्रा के दौरान, वह अपनी गरीबी और संघर्ष भरे दिनों को याद कर रही थी और भगवान का दिल से धन्यवाद कर रही थी कि उन्होंने उसे इतनी शक्ति और हौसला दिया।

संजना लखनऊ रेलवे स्टेशन पर उतरी और वहां से अपने गांव रामपुर के लिए बस ली। बस में बैठते ही वह पुरानी यादों में खो गई। गांव की गलियों को देखते हुए, उसे सबकुछ वैसा ही महसूस हो रहा था जैसा वह छोड़कर गई थी। कच्चे घर, खेतों में लहराती फसलें, बैलगाड़ियां, इधर-उधर घूमती गायें और भैंसें, और बच्चे जो पत्थरों से अमरूद तोड़ रहे थे।

धीरे-धीरे बस गांव के करीब पहुंच रही थी। संजना का दिल उत्साह से भर गया। घर के पास आते हुए वह सोच रही थी कि अपने पति को बड़ा सरप्राइज देगी। लेकिन नियति ने उसके लिए कुछ और ही योजना बना रखी थी। रास्ते में उसे एक मंदिर दिखा। उसने सोचा कि घर जाने से पहले भगवान के दर्शन कर ले। यह वही मंदिर था जहां वह अक्सर मन्नत मांगने और भगवान को प्रणाम करने आती थी।

मंदिर पहुंचकर उसने देखा कि वहां भीड़ जमा है। शायद किसी की शादी हो रही थी। यह देखकर वह खुश हुई और सोचा कि देखूं कौन शादी कर रहा है। जैसे ही उसने मंदिर की सीढ़ियां चढ़ीं, उसे अपने कई रिश्तेदार वहां दिखाई दिए। लेकिन जब उसकी नजर दूल्हा-दुल्हन पर पड़ी, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।

दूल्हा कोई और नहीं बल्कि उसका अपना पति कांत था, और दुल्हन गांव की प्रधान थी। यह नजारा देखकर संजना की दुनिया चकनाचूर हो गई। वह अपने पति को सरप्राइज देने आई थी, लेकिन खुद ऐसा झटका खा गई कि उसकी पूरी दुनिया हिल गई।

अपने पति को प्रधान के साथ फेरे लेते देख, वह समझ नहीं पाई कि अब क्या करें। उसके पैर कांपने लगे। तभी कांत की नजर संजना पर पड़ी और वह भी चौंक गया कि संजना इस वक्त यहां कैसे आ गई। संजना ने अपने पति से कहा, “कांत, यह क्या कर रहे हो? किसी और से शादी कर रहे हो? मेरे जीते जी यह कैसे कर सकते हो?”

कांत ने शांत होकर कहा, “संजना, मैं तुम्हें सारी सच्चाई बताता हूं।” लेकिन संजना ने गुस्से में कहा, “मुझे कुछ नहीं सुनना! मैं 5 साल तक दिल्ली डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए गई थी और तुम यहां किसी और से शादी कर रहे हो? यह दिन देखने से बेहतर था कि मैं मर जाती।”

कांत ने कहा, “यह सब मैं तुम्हारे लिए ही कर रहा हूं।” संजना हैरानी से बोली, “मेरे लिए? इसका क्या मतलब है? मेरे लिए किसी और से शादी कर रहे हो?” कांत ने कहा, “हां, तुम्हारे लिए ही।”

संजना ने आक्रोशित होकर कहा, “यह कैसे हो सकता है? मैं दिल्ली डिप्टी कलेक्टर बनने गई थी और अब बन भी गई हूं। मैंने सोचा था तुम्हें सरप्राइज दूंगी, लेकिन तुम यहां किसी और से शादी कर रहे हो!”

यह सुनकर कांत खुश हुआ कि संजना डिप्टी कलेक्टर बन गई है। उसने कहा, “मैं तुम्हें सबकुछ बताऊंगा।”

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आइए दोस्तों, अब जानते हैं कि कांत अपनी पत्नी के होते हुए भी किसी और से शादी क्यों कर रहा था। लखनऊ के पास एक छोटे से गांव रामपुर में एक किसान परिवार में एक लड़की रहती थी, जिसका नाम था संजना। संजना के पिता का पहले ही देहांत हो चुका था। वह पढ़ाई में बहुत तेज थी और बाकी बच्चों से अलग रहती थी। उसका एकमात्र लक्ष्य पढ़ाई करना था।

संजना ने गांव के सरकारी स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए उसे लखनऊ जाना था। रोजाना लखनऊ जाना संभव नहीं था, और वहां की पढ़ाई भी काफी महंगी थी। उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई के लिए खूब मेहनत की। खेतों में काम करते हुए उन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई का खर्च उठाया।

इसी बीच संजना की उम्र बढ़ रही थी। उसके माता-पिता को चिंता सताने लगी और उन्होंने कहा, “अब शादी कर ले, भले ही तू लखनऊ पढ़ने चली जाए, लेकिन शादी हो जाने से हमें घर में सहारा मिलेगा।” अपनी मां की बात मानकर संजना ने गांव के एक लड़के कांत से शादी कर ली। कांत ने दसवीं तक की पढ़ाई की थी और एक समझदार व्यक्ति था।

वह अपनी पत्नी संजना से कहता, “तुम पढ़ाई पर ध्यान दो, घर मैं संभाल लूंगा। तुम्हारे माता-पिता की चिंता मत करो, उनका भी मैं ख्याल रखूंगा।” संजना अपने पति से बहुत खुश थी। कांत, संजना और उसके घर का अच्छे से ध्यान रखता था।

संजना लखनऊ में रहकर कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी। वह अपने सपने को पूरा करने में जुटी थी कि एक दिन डिप्टी कलेक्टर बने। एक दिन उसके कॉलेज में लखनऊ की डिप्टी कलेक्टर आईं, जो छात्रों को अपने जीवन के संघर्ष और मेहनत के बारे में प्रेरणादायक भाषण दे रही थीं। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने कठिन परिस्थितियों और त्याग के बल पर डिप्टी कलेक्टर का पद हासिल किया। वे भी एक गरीब परिवार से थीं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर तक छोड़ दिया था।

संजना उनकी बातें सुनकर बहुत प्रेरित हुई। उनके शब्दों ने उसके मन में एक नई ऊर्जा जगा दी कि वह भी डिप्टी कलेक्टर बनेगी। किसी की कहानी सुनकर प्रेरणा लेना आसान है, लेकिन उसे बनाए रखना और लक्ष्य को प्राप्त करना बेहद कठिन होता है।

संजना ने अपने पति कांत से कहा, “मुझे डिप्टी कलेक्टर बनना है, चाहे जो भी हो। मैं इसे पूरा करके रहूंगी।” लेकिन इसके लिए उसे दिल्ली जाना था, जहां उसे तीन से चार साल तक कड़ी मेहनत के साथ यूपीएससी की परीक्षाओं की तैयारी करनी थी। डिप्टी कलेक्टर बनना आसान बात नहीं थी।

उसके माता-पिता ने चिंता जताई, “बेटी, तू दिल्ली जाएगी तो तेरे पति का क्या होगा? वह यहां अकेला कैसे रहेगा?”

कांत ने उन्हें समझाते हुए कहा, “आप चिंता मत करें। आप दिल्ली जाओ, मैं यहां अकेले रह लूंगा और आपके माता-पिता का भी ध्यान रखूंगा। आप बस अपना सपना पूरा करें और डिप्टी कलेक्टर बनकर लौटें।”

यह सुनकर संजना का हौसला बढ़ा। वह घर से कुछ पैसे लेकर दिल्ली चली गई। लेकिन वहां पहुंचकर उसे एहसास हुआ कि यूपीएससी की कोचिंग, रहना और खाना सब बहुत महंगा था। संजना के पास बस थोड़ा सा पैसा था। वह सोचने लगी, “यहां तो आ गई, लेकिन अब पढ़ाई कैसे करूं? कोचिंग में दाखिला कैसे लूं?”

थोड़ी देर के लिए उसने हार मानने का विचार किया और घर लौटने की सोची। उसने अपने पति कांत को फोन करके अपनी स्थिति बताई। संजना ने कहा, “मैं वापस आ रही हूं। यहां बहुत सारा पैसा चाहिए और मेरे पास तो बस थोड़ा सा ही है।”

कांत ने उसे समझाते हुए कहा, “चिंता मत करो। जितना पैसा चाहिए, मैं भेजूंगा। तुम बस अपने सपने पर ध्यान दो और पढ़ाई करो।”

संजना ने पूछा, “लेकिन तुम पैसा कहां से लाओगे? तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है।”

कांत ने आत्मविश्वास से कहा, “तुम उसकी फिक्र मत करो। मैं किसी भी तरह इंतजाम कर लूंगा। बस तुम अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाओ। वहां अच्छे से रहो और मेहनत करो।”

कांत ने पूछा, “तुम्हें कितना पैसा चाहिए?”

संजना ने कहा, “तीन से चार साल तक रहने, खाने और कोचिंग के लिए बहुत सारा पैसा लगेगा।”

कांत ने दृढ़ता से कहा, “ठीक है, मैं व्यवस्था करता हूं। तुम बस अपना सपना पूरा करो।”

कांत ने ना जाने कहां-कहां से इंतजाम किया और संजना को बताया, “मैं तुम्हारे खाते में पैसा डाल रहा हूं।” संजना सोच में पड़ गई कि उसका पति इतना पैसा कहां से लाया, लेकिन कांत ने कसम देकर कहा, “यह मत पूछो कि पैसा कहां से आया, बस पढ़ाई करो।” संजना ने पति को धन्यवाद कहा और कोचिंग में दाखिला ले लिया। अब वह जी-जान से पढ़ाई करने लगी।

समय बीतता गया और यूपीएसएससी की पहली परीक्षा का वक्त आया। संजना ने प्रारंभिक परीक्षा दी, लेकिन पहली ही परीक्षा इतनी कठिन थी कि वह अच्छे से नहीं कर पाई। जब नतीजा आया, तो नंबर कम थे और उसका चयन नहीं हुआ। वह बहुत उदास हुई। उसने अपने पति को बताया, तो कांत ने कहा, “फिर से कोशिश करो। यहां तुम्हारे माता-पिता संघर्ष कर रहे हैं। चाहे जो भी हो, डिप्टी कलेक्टर बनकर ही लौटना।”

पति और माता-पिता के त्याग ने संजना को फिर से मेहनत के लिए प्रेरित किया। इस बार उसके मन में जोश, विश्वास और उमंग थी। उसने दोगुनी मेहनत से पढ़ाई शुरू की। इस बार वह यूपीएसएससी की प्रारंभिक परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास हुई। यह खबर सुनकर कांत बहुत खुश हुआ। उसने कहा, “अब आगे की परीक्षाओं की तैयारी करो और जल्दी डिप्टी कलेक्टर बनकर लौटो।”

संजना को गांव छोड़े तीन साल हो गए थे। अब वह यूपीएसएससी की मुख्य परीक्षा दे रही थी। अगर वह इसमें पास होती, तो बस इंटरव्यू बाकी रहता। संजना ने मुख्य परीक्षा में भी अच्छे नंबर लाकर पास कर लिया। रिजल्ट देखकर वह खुश थी, लेकिन उसने यह खबर अपने पति को नहीं बताई। उसने ठान लिया कि वह सीधे डिप्टी कलेक्टर बनकर घर जाएगी और पति व माता-पिता को सरप्राइज देगी।

कुछ दिनों बाद उसका इंटरव्यू हुआ, जिसमें भी उसने शानदार प्रदर्शन किया और टॉप रैंक के साथ डिप्टी कलेक्टर बन गई। संजना ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया था। वह खुशी से फूट-फूट कर रोने लगी। आज वह डिप्टी कलेक्टर बनी थी, तो अपनी मेहनत, लगन और पति के त्याग की वजह से। अगर कांत ने पैसे की मदद न की होती, तो वह यह मुकाम हासिल नहीं कर सकती थी।

लेकिन सवाल था कि आखिर कांत ने पैसा कहां से लाया? यह सवाल संजना के मन में बार-बार उठ रहा था। उसने सोचा कि घर जाकर वह डिप्टी कलेक्टर का पत्र पति को देगी और उसे यह खुशखबरी सुनाएगी।

तभी कांत का फोन आया। उसने पूछा, “परीक्षा का क्या हुआ? पास हुई या नहीं?” संजना ने बहाना बनाया, “अभी रिजल्ट नहीं आया। कुछ दिनों बाद आएगा। अब मैं कुछ साल बाद ही आऊंगी।” लेकिन सच यह था कि वह डिप्टी कलेक्टर बन चुकी थी।

कांत के फोन आने के वक्त संजना ट्रेन में थी। वह लखनऊ जा रही थी और सफर के दौरान अपने पुराने दुख भरे दिनों को याद कर रही थी। उसे अपने माता-पिता की मेहनत और संघर्ष याद आ रहे थे, जब वे खेतों में धूप में तपकर काम करते थे। संजना को वह समय भी याद आया, जब वह स्कूल जाती थी, एक वक्त भूखी रहती और एक वक्त खाना खाती। अपने गरीबी के दिन और माता-पिता के संघर्ष उसकी आंखों के सामने घूम रहे थे।

संजना अपने पति के साथ बिताए पलों को भी याद कर रही थी। शादी के कुछ ही महीनों बाद वह दिल्ली चली गई थी। वह सोच रही थी कि अब वह हमेशा कांत के साथ रहेगी। वह अपने सपनों में खोई हुई थी – एक बड़ा बंगला, गाड़ी और एक सुखी परिवार।

जब संजना अपने गांव रामपुर के लिए बस पकड़कर जा रही थी, तो उसे अंदाजा नहीं था कि आज का दिन उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देगा। गांव की गलियों और खेतों को देखकर उसे अपना बचपन याद आ रहा था। जब उसकी नजर गांव के मंदिर पर पड़ी, तो उसने सोचा कि भगवान को शुक्रिया अदा करना चाहिए।

मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते वक्त उसने देखा कि वहां किसी की शादी हो रही है। जब वह और ऊपर चढ़ी, तो उसने देखा कि दूल्हा कोई और नहीं, बल्कि उसका अपना पति कांत था। कांत गांव की प्रधान की बेटी से शादी कर रहा था। यह देखकर संजना के होश उड़ गए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे हो सकता है।

संजना ने कांत से सवाल किया, “तुम यह क्या कर रहे हो?” कांत ने उसे देखा और हैरान रह गया। वह सोच रहा था कि संजना तो दिल्ली में है। कांत ने पूछा, “तुम यहां कैसे?” संजना बोली, “हां, मैं यहां हूं। मैं तुम्हें सरप्राइज देने आई थी, लेकिन तुमने मुझे सरप्राइज दे दिया। तुम किसी और से शादी कर रहे हो? मैं 5 साल के लिए बाहर क्या गई, तुमने तो जीवनसाथी ही बदल लिया!”

कांत ने सफाई देते हुए कहा, “जैसा तुम देख रही हो, वैसा नहीं है। यह सब मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं। मेरी बात सुनो।”

संजना ने गुस्से में कहा, “मुझे कुछ नहीं सुनना। तुमने मुझे धोखा दिया है। मैं पढ़ाई करने और डिप्टी कलेक्टर बनने बाहर गई थी, और तुमने यहां दूसरी शादी कर ली।”

कांत ने कहा, “सुनो, यह सब मजबूरी में हो रहा है। तुम्हें डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए पैसे चाहिए थे। मैंने गांव की प्रधान से पैसे उधार लिए थे और वादा किया था कि 3 साल में चुका दूंगा। लेकिन 5 साल हो गए और मैं पैसे नहीं लौटा पाया। प्रधान ने शर्त रखी कि अगर मैं पैसा नहीं चुका सकता, तो मुझे उसकी विकलांग बेटी से शादी करनी होगी। इसलिए मैं यह शादी कर रहा हूं।”

संजना ने यह सुनकर फेरे रुकवा दिए और कहा, “यह शादी नहीं हो सकती।”

यह सुनकर संजना की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपने पति कांत को गले लगाते हुए कहा, “अब तुम्हें प्रधान की बेटी से शादी करने की जरूरत नहीं है। मैं आ गई हूं। मैं डिप्टी कलेक्टर बन चुकी हूं और मैंने सबसे अच्छी रैंक हासिल की है। अब हम जल्द ही प्रधान का पैसा लौटा देंगे।”

संजना ने गांव की प्रधान से कहा, “यह शादी अब कांत नहीं करेगा। आपको पैसा चाहिए तो मैं कुछ दिनों में लौटा दूंगी।” लेकिन प्रधान जिद पर अड़ी रही और बोली, “अगर पैसा देना है तो अभी दो, वरना मैं तुम्हारे पति की शादी अपनी विकलांग लड़की से करवाऊंगी।”

संजना ने ठहर कर कहा, “आप किससे बात कर रही हैं? क्या आपको पता है कि मैं डिप्टी कलेक्टर हूं और आप मेरे पति से इस तरह की जबरदस्ती करना चाहती हैं?” इसके बाद संजना ने गांव के इंस्पेक्टर को बुलाया। इंस्पेक्टर और हवलदार ने संजना को “मैडम” कहकर संबोधित किया। यह देखकर प्रधान सोच में पड़ गई।

फिर, इंस्पेक्टर और संजना ने प्रधान को चेतावनी दी, “आपको सारा पैसा कुछ दिनों में मिल जाएगा। लेकिन अगर अभी नहीं मानीं, तो आपको सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा।” मजबूर होकर प्रधान को संजना की बात माननी पड़ी और उसे सलाम ठोकना पड़ा।

इसके बाद, संजना, जो अब डिप्टी कलेक्टर थी, ने दो-तीन महीनों में प्रधान का सारा पैसा लौटा दिया। फिर, संजना अपने पति कांत के साथ खुशी-खुशी रहने लगी। उसके माता-पिता भी अपनी बेटी की सफलता देखकर बेहद खुश थे।

तो दोस्तों, इस तरह एक गांव की गरीब लड़की ने अपने पति और माता-पिता के बलिदान और अपने जुनून से डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना पूरा किया। इस कहानी के बारे में आपके क्या विचार हैं? अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं!

दोस्तों, इस कहानी का उद्देश्य किसी को दुखी करना या उनकी भावनाओं को आहत करना नहीं है। हमारा मुख्य उद्देश्य आपको जागरूक और सतर्क बनाना है, ताकि आप इन कहानियों से प्रेरणा लेकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का हिस्सा बन सकें।

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