
दोस्तों, यह कहानी एक महिला की है जो पिछले छह महीनों से अपने मायके में रह रही है। वहां वह दूसरों के घरों में काम करके अपना गुजारा कर रही है। एक दिन सुबह-सुबह जब वह काम पर जाने के लिए घर से निकलती है, तो अचानक उसकी नजर एक कार पर पड़ती है। यह कार डीएम साहब की थी और धीरे-धीरे उनके घर की तरफ बढ़ रही थी।
इस कार को देखकर महिला ठिठक जाती है और ध्यान से उसे देखने लगती है। तभी उसके घर के थोड़ी दूर पर आकर वह कार रुकती है। कार से उसका अनपढ़ पति बाहर उतरता है। जैसे ही महिला यह सब देखती है, वह हैरान रह जाती है।
आखिर कौन थी वह महिला? और किस कारण उसका अनपढ़ पति डीएम साहब की कार से उतरा था? पूरी सच्चाई जानने के लिए कहानी को अंत तक जरूर पढ़ें।
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में प्रीति नाम की एक लड़की रहती थी। प्रीति पढ़ाई में बेहद होशियार थी। उसने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद हाल ही में ग्रेजुएशन में दाखिला लिया था। प्रीति का सपना था कि वह पढ़-लिखकर एक बड़ी अधिकारी बने, लेकिन उसकी गरीबी उसके सपनों के बीच आ रही थी। उसके पिता के पास ज्यादा पैसे नहीं थे, फिर भी वे किसी तरह उसे सरकारी कॉलेज में पढ़ा रहे थे।
एक दिन, जब प्रीति कॉलेज जा रही थी, तो रास्ते में बाजार से लौट रहे एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी। प्रीति बेहद सादगी से कॉलेज जाती थी। न तो वह इधर-उधर देखती, न ही किसी से बात करती। उसकी नजरें हमेशा जमीन की तरफ झुकी रहती थीं। उस व्यक्ति को प्रीति का यह स्वभाव बहुत पसंद आया। वह व्यक्ति पास के गांव का एक जमींदार था, जिसके पास काफी पुश्तैनी जमीन और संपत्ति थी। उसके दो बेटे भी थे।
प्रीति को देखने के बाद जमींदार ने कॉलेज जाकर उसके बारे में जानकारी जुटाई और उसके घर का पता भी मालूम कर लिया। फिर वह जमींदार प्रीति के पिता से मिलने उनके घर पहुंचा और उनकी बेटी का हाथ अपने बड़े बेटे के लिए मांग लिया। यह सुनकर प्रीति के पिता हैरान रह गए। उन्होंने कहा, “साहब, क्यों हमारा मजाक उड़ा रहे हैं? हम गरीब जरूर हैं, लेकिन इस तरह का मजाक मत कीजिए।”
इस पर जमींदार ने जवाब दिया, “मैं मजाक नहीं कर रहा। तुम्हारी बेटी का स्वभाव मुझे बहुत पसंद आया। मुझे अपने बेटे के लिए ऐसी ही सादगी और संस्कारों वाली बहू चाहिए। मुझे दहेज में कुछ नहीं चाहिए। अगर तुम्हारे पास शादी की व्यवस्था के लिए पैसे नहीं हैं, तो मैं अपनी तरफ से सारी तैयारियां करवा दूंगा। बस, तुम्हें हां कहनी है।”
प्रीति के पिता गहरी सोच में पड़ गए। उनके पास पैसे नहीं थे, और ऊपर से बेटी की शादी का ऐसा अच्छा मौका भी आ गया था। आखिरकार, उन्होंने इस रिश्ते के लिए हां कर दी।
शाम को जब प्रीति कॉलेज से लौटती है, उसके पिता उसे बताते हैं, “बेटी, तुम्हारी शादी के लिए एक अच्छा रिश्ता आया है। हमने हां कह दिया है। बहुत बड़ा घराना है, ढेर सारी पुश्तैनी जमीन है। वहां तुम्हारी शादी हो जाएगी तो तुम रानी बनकर रहोगी।” यह सुनकर प्रीति घबरा जाती है और कहती है, “पिताजी, मैं पढ़-लिखकर एक बड़ी अधिकारी बनना चाहती हूं। कृपया मेरी शादी मत करवाइए।” लेकिन पिता गहरी सांस लेते हुए जवाब देते हैं, “बेटी, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं तुम्हें पढ़ाकर अधिकारी बना सकूं। और अगर मैं तुम्हारी पढ़ाई जारी भी रखूं, तो इसकी क्या गारंटी है कि तुम अधिकारी बन ही जाओगी? इससे अच्छा है कि तुम शादी कर लो।”
प्रीति अपने पिता की मजबूरी को समझती है। उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। फिर वह धीमे स्वर में कहती है, “ठीक है पिताजी, अगर आप ऐसा चाहते हैं तो ऐसा ही सही।” इसके बाद प्रीति के पिता जमींदार को खबर भिजवा देते हैं और दोनों की शादी पक्की हो जाती है। जमींदार के दो बेटे थे और प्रीति से शादी करवाने का एक और कारण भी था। जमींदार का बड़ा बेटा ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था और पैसों के कारण उसकी बदनामी हो चुकी थी। गांव में चर्चा थी कि ये लोग किसी की इज्जत नहीं करते और ना ही किसी से ढंग से बात करते हैं। इसी वजह से जमींदार ने अपने बड़े बेटे की शादी प्रीति से करवाने का फैसला किया।
कुछ दिनों बाद प्रीति की शादी हो जाती है और वह अपने ससुराल आ जाती है। वहां वह अपने सास-ससुर की सेवा करती और अपने पति की इच्छाओं का सम्मान भी करती थी। एक दिन प्रीति अपने पति से कहती है, “मुझे पढ़ाई जारी रखनी है। अगर आप मेरी आगे की पढ़ाई करवा दें तो बहुत अच्छा होगा।” लेकिन उसका पति, जो कि दसवीं फेल था, गुस्से में कहता है, “पढ़ाई करने की कोई जरूरत नहीं है। हमारे पास पैसों की कोई कमी नहीं है, तो तुम्हें आगे पढ़ने की जरूरत ही क्या है? घर के अंदर आराम से रहो और घर संभालो। वैसे भी तुम्हें बच्चे ही पालने हैं।” ऐसा कहकर उसने साफ मना कर दिया।
हालांकि, उसी घर में उसका एक छोटा देवर था, जिसका नाम अमित था। अमित बीए की पढ़ाई कर रहा था। उसकी पढ़ाई देखकर प्रीति को बहुत खुशी होती थी। अमित का स्वभाव अपने बड़े भाई से बिल्कुल अलग था। वह अपनी भाभी का आदर करता और उसे मां की नजरों से देखता था। उधर, अमित के माता-पिता भी बड़े नेक दिल और समझदार थे। लेकिन उसका बड़ा भाई विजय पूरी तरह से दौलत के घमंड में चूर था।
अब इसके बाद जब अमित पढ़ाई करता रहता तो प्रीति अपने सपनों को अमित के अंदर जीने लगती वह अमित को एक बड़ा अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करने लगती लेकिन अमित अभी इस बात को नहीं समझता था और भाभी की बातों को मजाक में उड़ा देता था वह बिल्कुल भी इस बारे में गंभीरता से नहीं सोचता था अमित पढ़ाई में अच्छा था लेकिन उसे लगता था कि उनके पास काफी रुपया पैसा है तो उसे किसी बड़े अधिकारी बनने की जरूरत ही क्या है वैसे भी अगर वह जीवन भर कुछ भी ना करे तो भी इतनी आए थी कि उसकी जिंदगी आराम से गुजर सकती थी इसी वजह से वह फिलहाल अपनी भाभी की किसी भी बात पर गौर नहीं देता था
लेकिन एक दिन, जब अमित एक होटल में बैठा हुआ था, वहां अचानक कलेक्टर साहब आए। उनका रुतबा देखकर अमित पूरी तरह से स्तब्ध रह गया। कलेक्टर साहब के साथ सिक्योरिटी, सरकारी गाड़ी और ड्राइवर था। यह सब देखकर अमित सोचने लगा कि ऐसा रुतबा हो तो पैसे का महत्व भी कम हो जाता है। इस घटना के बाद, वह अपनी भाभी प्रीति की बातों को और भी गंभीरता से लेने लगा। प्रीति उसे बार-बार बड़े अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करती रहती थी।
धीरे-धीरे अमित ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर ली और अब वह आगे की पढ़ाई के लिए कोचिंग करने बाहर जाना चाहता था। जब बड़े भाई विजय को यह बात पता चली तो उसने अमित को तुरंत मना कर दिया। विजय ने कहा, “भाई, तू घर में आराम से रह, हमारे पास अच्छा-खासा पैसा है। तुझे पढ़ाई की क्या जरूरत है?” लेकिन अमित के मन में प्रीति की बातें बार-बार घूम रही थीं। उसने उसे समझाया था कि बड़े अधिकारी का रुतबा अलग होता है और पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता।
अमित ने खुद अपनी आंखों से कलेक्टर साहब का रुतबा देखा था। यही वजह थी कि वह अपनी पढ़ाई के लिए दृढ़ हो गया। जब विजय ने देखा कि छोटा भाई उसकी इच्छा के खिलाफ जा रहा है, तो उसने गुस्से में कह दिया, “अगर तुम पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहते हो, तो हमारी तरफ से कोई सपोर्ट नहीं मिलेगा। घर से तुम्हें एक भी पैसा नहीं मिलेगा।” विजय, जो घर का बड़ा बेटा और जिम्मेदार था, अपने घमंड में इतना चूर था कि माता-पिता की समझाने की कोशिशें भी बेकार हो गईं।
अमित के सपने टूटते हुए नजर आने लगे। एक शाम, जब विजय घर पर नहीं था, अमित अपनी भाभी प्रीति से बात कर रहा था। प्रीति ने उसे दिलासा दिया और उसकी हिम्मत बढ़ाई। अमित को अब यह एहसास हो गया कि अपने सपने पूरे करने के लिए उसे खुद ही रास्ता निकालना होगा।
तभी प्रीति कुछ पैसे लाकर अमित को देती है और कहती है, “यह लो, अमित। ये रहे पैसे। इनसे अपनी जिंदगी बनाओ और एक बड़ा अधिकारी बनकर दिखाओ। लेकिन यह बात तुम्हारे भाई को पता नहीं चलनी चाहिए।” यह कहकर उसने वे पैसे दे दिए, जो उसने अब तक इकट्ठा कर रखे थे। ये वही पैसे थे जो शादी के समय उसे मिले थे और उसने बचाकर रखे थे।
अमित ने पैसे मिलने के बाद अपने माता-पिता से आज्ञा ली और कोचिंग के लिए बड़े शहर चला गया। उधर, जब विजय को पता चला कि अमित घर छोड़कर गया है, तो उसे बहुत गुस्सा आया। लेकिन चूंकि अमित ने उससे पैसे नहीं लिए थे, इसलिए वह कुछ नहीं कह सका।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा और अमित को और भी पैसों की जरूरत महसूस हुई। उसने इस बारे में अपने पिता से बात की, लेकिन पिता लाचार थे क्योंकि घर का पूरा खर्च और लेन-देन बड़े बेटे विजय के हाथ में था। विजय बिल्कुल नहीं चाहता था कि उसका छोटा भाई पढ़-लिखकर कामयाब बने। इस वजह से अमित काफी चिंता में रहने लगा।
यह बात किसी तरह प्रीति को पता चल गई। जब प्रीति को मालूम हुआ कि उसके देवर को पैसों की जरूरत है, तो उसने अपने ससुर को अपने गहने निकालकर दे दिए। ये वही गहने थे जो उसके पति विजय ने शादी में उसे दिए थे। प्रीति भावुक होकर बोली, “इन गहनों को ले जाइए और बेचकर अमित को दे दीजिए, ताकि वह पढ़-लिखकर एक बड़ा अधिकारी बन सके।”
यह सब देखकर सास-ससुर की आंखें भर आईं। वे अपनी बहू को पाकर खुद को धन्य मानते हुए बोले, “बेटी, जरूर हमने पिछले जन्म में कुछ अच्छे कर्म किए होंगे जो तुम हमारे परिवार में आई हो।”
अगर तुम नहीं होतीं, तो अमित की पढ़ाई कभी पूरी नहीं हो पाती। इसके बाद अमित के पिता अपने गहने बेचकर पैसे अमित को भेज देते हैं। यह सब बड़े बेटे विजय से छुपा लिया जाता है, और परिवार चुपचाप इस स्थिति को सहता रहता है। समय बीतता है, और अमित कलेक्टर बन जाता है। अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद भी वह अपने परिवार को इस बारे में नहीं बताता। वह चुपके से सरप्राइज देने की योजना बनाता है। हालांकि, वह अपने माता-पिता से फोन पर बातचीत करता रहता है, लेकिन कभी यह जाहिर नहीं होने देता कि वह अब एक बड़ा अधिकारी बन चुका है। वह हमेशा यही कहता कि उसे अभी दो साल और लगेंगे।
जब अमित के पिता उससे पैसों के लिए पूछते हैं, तो वह मना कर देता है। उसे पता होता है कि उसकी भाभी प्रीति ने उसकी पढ़ाई के लिए संघर्ष किया है। इसलिए वह ट्रेनिंग के दौरान पैसों से मदद लेने से इंकार कर देता है और कहता है कि उसकी सैलरी से उसका काम चल रहा है। डेढ़ साल में अमित की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है। इसी दौरान विजय को यह सब पता चलता है कि उसकी पत्नी प्रीति ने अपने गहने बेचकर अमित की पढ़ाई का खर्चा उठाया है। यह बात उसे तब पता चलती है, जब वह अपने माता-पिता को आपस में बात करते हुए सुनता है।
“हमारी बहू कितनी नेक है। अगर वह न होती, तो अमित की पढ़ाई कभी पूरी नहीं हो पाती,” ऐसा सुनकर विजय गुस्से से उबल पड़ता है। उसके मन में ईर्ष्या और गुस्से का तूफान आ जाता है। वह अपने माता-पिता पर बरस पड़ता है, “आप सब ने मुझे धोखा दिया! मेरे मना करने के बावजूद अमित को पढ़ने भेजा गया, और सब कुछ मुझसे छुपाया गया।”
इसके बाद विजय गुस्से से भरा हुआ प्रीति के पास जाता है और उस पर चिल्लाने लगता है। वह कहता है, “जब मैंने मना किया था, तो तुमने पैसे क्यों दिए? क्या मेरी कोई अहमियत नहीं है?” प्रीति उसे शांत करने की कोशिश करती है और कहती है, “शिक्षा सबसे बड़ी दौलत होती है। अगर अमित बड़ा अधिकारी बन जाएगा, तो तुम्हारा नाम और भी ऊंचा होगा।” लेकिन विजय के मन में जलन और अहंकार की आग धधक रही थी। वह खुद पढ़ाई में असफल रहा था, इसलिए यह सब उसे सहन नहीं हो रहा था।
अपने गुस्से में अंधे होकर विजय उसी रात प्रीति को घर से बाहर निकाल देता है और कहता है, “अगर दूसरों को पढ़ाना इतना ही पसंद है, तो जाओ, उसी के पास चली जाओ। इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।”
यह सब देखकर विजय के माता-पिता टूट जाते हैं। उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, लेकिन वे विजय के गुस्से और अभिमान के आगे कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं कर पाते। विवश होकर वे चुपचाप घर के अंदर चले जाते हैं। इसके बाद प्रीति अपने मायके चली जाती है, और वहीं रहने लगती है।
मायके में भी हालात ठीक नहीं थे, इसलिए प्रीति ने दूसरों के घरों में काम करना शुरू कर दिया ताकि वह अपने माता-पिता पर बोझ न बने। प्रीति को पूरा विश्वास था कि उसका देवर अमित एक दिन जरूर आएगा और उसे इस स्थिति से बाहर निकालेगा। जब उसके माता-पिता उससे कहते, “बेटी, हम लोग विजय से बात कर लेते हैं,” तो प्रीति दृढ़ता से इनकार कर देती, “नहीं पिताजी, अभी सही समय नहीं आया है। जब सही वक्त आएगा, तब हम बात करेंगे।” वह अपने पिता को समझाकर चुप करा देती।
धीरे-धीरे समय बीतता जाता है और अमित की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है। उसकी पोस्टिंग एक जिले में कलेक्टर के रूप में हो जाती है। उसे सरकारी आवास, सरकारी गाड़ी और सुरक्षा गार्ड भी मिलते हैं। अब वह अपने परिवार को सरप्राइज देने के लिए अपनी सरकारी गाड़ी में बैठकर सीधा गांव की ओर रवाना हो जाता है।
गांव में जैसे ही अमित की गाड़ी प्रवेश करती है, चारों ओर हलचल मच जाती है। गांव के लोग हैरानी से उसकी ओर देखने लगते हैं। यह कोई बड़ा अधिकारी लग रहा था। लोग कानाफूसी करने लगते हैं और धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे चलने लगते हैं। जैसे ही अमित अपनी चमचमाती सरकारी गाड़ी से उतरता है, पूरे गांव में खलबली मच जाती है। लोग हैरानी से उसे देखते रह जाते हैं। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही अमित है, जो कभी इसी गांव की गलियों में साधारण कपड़े पहनकर घूमा करता था।
गांव के लोग इकट्ठा होने लगते हैं। उनके चेहरों पर आश्चर्य और प्रशंसा के भाव साफ झलक रहे थे। अमित बिना किसी दिखावे के सीधा अपने घर की ओर बढ़ता है। उसके कदम तेज और निगाहें अपने घर पर टिकी थीं। घर के आंगन में उसके माता-पिता और भाई संतोष खड़े थे। जैसे ही अमित घर के अंदर प्रवेश करता है, सबसे पहले वह अपने बड़े भाई संतोष के पैर छूता है और भावुक होकर कहता है, “भैया, आप चाहे मुझसे कितने भी नाराज हों, लेकिन मेरे लिए आप हमेशा पिता समान रहेंगे। अगर भाभी प्रीति नहीं होतीं, तो…”
अमित के यह शब्द सुनकर संतोष के चेहरे पर संकोच और ग्लानि के भाव उभर आते हैं, लेकिन वह कुछ नहीं बोल पाता। इसके बाद अमित अपने माता-पिता के पैर छूता है। माता-पिता की आंखों में आंसू थे, जो खुशी और गर्व से छलक रहे थे। फिर अमित की नजरें घर में प्रीति को ढूंढने लगती हैं। वह पूरे घर में भाभी को तलाशता है, लेकिन प्रीति कहीं नहीं दिखती।
अमित थोड़ा बेचैन हो जाता है और अपनी मां से पूछता है, “भाभी कहां हैं?” यह सुनते ही उसकी मां की आंखें भर आती हैं। भारी मन से वे सारी सच्चाई बयान कर देती हैं कि जब संतोष को सच्चाई का पता चला, तो उसने क्रोध में आकर प्रीति को घर से बाहर निकाल दिया। यह सुनते ही अमित का चेहरा गुस्से से तमतमा उठता है। उसकी आंखों में क्रोध की ज्वाला साफ दिखाई दे रही थी।
अमित बिना कुछ सोचे-समझे संतोष की ओर बढ़ता है। उसके कदमों में आक्रोश था। वह संतोष का हाथ पकड़ता है और उसे घर के बाहर घसीट ले जाता है। अमित गुस्से और दर्द से भरी आवाज में चिल्लाकर कहता है, “देखो विजय भैया, आज से पहले हमारे घर पर कभी इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं हुई थी। भले ही हमारे पास कितना भी पैसा हो, कितनी भी संपत्ति हो, लेकिन यह इज्जत, यह मान-सम्मान… क्या आपने कभी इसे महसूस किया है?”
अमित के इन शब्दों में गूंजती सच्चाई ने विजय को भीतर तक झकझोर दिया। उसका चेहरा शर्म से झुक गया और आंखों में पश्चाताप के आंसू छलक आए। उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था।
विजय भावुक होकर अपने छोटे भाई अमित और माता-पिता से माफी मांगने लगा। उसके शब्द कांप रहे थे, “मुझे माफ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।” तभी अमित अपने माता-पिता की ओर मुड़कर कहता है, “मां, बाबूजी, यह बात तो ठीक है कि भैया ने भाभी को घर से निकाल दिया था, लेकिन आपने मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताया? क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं था?”
अमित की बात सुनकर उसके पिता की आंखें भर आईं। वे भारी मन से जवाब देते हैं, “बेटा, हम तुम्हें बता तो देते, लेकिन हमें डर था कि अगर तुम्हें इन सब बातों का पता चल जाता तो तुम्हारी पढ़ाई में रुकावट आ जाती। हम नहीं चाहते थे कि हमारी पारिवारिक समस्याओं का असर तुम्हारे भविष्य पर पड़े।”
अमित गहरी सांस लेकर कहता है, “ठीक है, लेकिन अब इस गलती को सुधारना जरूरी है। और भैया, यह गलती आपने की है, तो इसे सुधारने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।”
इसके बाद अमित अपने बड़े भाई विजय को गाड़ी में बैठाता है और दृढ़ता से कहता है, “चलो, हम लोग भाभी के पास जा रहे हैं।” दोनों भाई सरकारी गाड़ी में बैठते हैं और सीधा प्रीति के मायके की ओर रवाना हो जाते हैं।
रास्ते भर विजय सिर झुकाए चुपचाप बैठा रहता है। उसके मन में पछतावे की लहरें उठ रही थीं। जैसे ही गाड़ी प्रीति के घर के बाहर रुकती है, वहां मौजूद लोग हैरानी से देखने लगते हैं। उसी वक्त प्रीति घर से बाहर निकल रही होती है, लेकिन जैसे ही वह चमचमाती सरकारी गाड़ी देखती है, उसके कदम ठिठक जाते हैं।
गाड़ी रुकते ही विजय बाहर निकलता है। वही विजय, जिसने कभी अपनी पत्नी को अपनाने से इंकार कर दिया था, आज पश्चाताप के आंसू लिए उसके सामने खड़ा था। विजय प्रीति के पास आता है। उसकी आंखों में गलानी और चेहरे पर पश्चाताप के भाव साफ झलक रहे थे। वह कांपती आवाज में हाथ जोड़कर कहता है, “प्रीति, मुझे माफ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने तुम्हारे साथ जो किया, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूं। तुम्हारे बिना मेरा घर नहीं, सिर्फ एक मकान है। कृपया मुझे माफ कर दो और वापस चलो।”
विजय की आंखों से आंसू छलक पड़े। प्रीति की आंखें भी भर आईं, लेकिन वह चुपचाप खड़ी रही। उसका दिल भी टूट चुका था।
लेकिन विजय के चेहरे पर पश्चाताप की सच्चाई साफ झलक रही थी। अमित दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर संतोष था कि उसका परिवार, जो कभी टूट गया था, अब फिर से जुड़ रहा था। प्रीति यह सब देखकर हैरान रह जाती है। उसका वही पति विजय, जिसने पढ़ाई-लिखाई कब की बंद कर दी थी, आज कलेक्टर साहब की गाड़ी से उतरा है, और उसके साथ एक पुलिसवाला भी खड़ा है। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। तभी गाड़ी से उसका देवर अमित बाहर निकलता है।
जैसे ही अमित बाहर आता है, वह बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी भाभी प्रीति के पैर छू लेता है। यह देखकर प्रीति की आंखें भर आती हैं। उसका वही देवर, जिसके लिए उसने अपने गहने तक बेच दिए थे, आज उसके सामने एक बड़ा अधिकारी बनकर खड़ा था। अमित की सफलता देखकर प्रीति की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। वह भावुक होकर अपने देवर को गले लगा लेती है और फूट-फूटकर रोने लगती है। उसकी खुशी और दुख के आंसू एक साथ बह रहे थे। खुशी इस बात की थी कि उसका देवर उसकी मेहनत को सार्थक कर गया और दुख इस बात का कि उसने अपने परिवार से दूरी का दर्द सहा।
इसके बाद विजय धीरे-धीरे प्रीति के पास आता है। उसका सिर शर्म से झुका हुआ था और आंखों में पश्चाताप की लकीरें साफ झलक रही थीं। वह कांपती आवाज में हाथ जोड़कर कहता है, “प्रीति, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती की। मैंने तेरे जैसी महान महिला को अपने घर से निकाल दिया। मेरे गुस्से और अहंकार ने हमें अलग कर दिया। लेकिन अब मैं और यह दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। कृपया मुझे माफ कर दो और हमारे साथ घर चलो। हमें फिर से एक परिवार बनना है।”
प्रीति कुछ देर तक चुपचाप उसे देखती रही। विजय की आंखों में सच्चाई और गहरा पश्चाताप देखकर उसका मन पिघल गया। उसने आंसू पोंछते हुए सिर हिला दिया, मानो उसे माफ कर दिया हो। इसके बाद अमित मुस्कुराते हुए कहता है, “भाभी, अब आपको हमारे साथ घर चलना ही होगा। यह घर बिना आपके अधूरा है।”
प्रीति की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। वह बिना कुछ बोले चुपचाप उनके साथ गाड़ी में बैठ जाती है। गांव वाले यह सब देख रहे थे और परिवार के प्रेम और एकता की मिसाल देखकर भावुक हो गए। इसके बाद वे सब साथ में घर लौट आते हैं।
घर के दरवाजे पर कदम रखते ही प्रीति ने आंगन को देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। वह घर, जो कभी उसे पराया लगने लगा था, आज उसे फिर से अपना लग रहा था। घर पहुंचने पर प्रीति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह अपने उसी आंगन में लौट आई थी, जिसे उसने कभी छोड़ दिया था।
इधर, विजय का घमंड पूरी तरह से टूट चुका था। अपने छोटे भाई अमित की सफलता और रुतबे को देखकर अब वह गर्व महसूस करता था। जिस छोटे भाई को कभी उसने ताने मारे थे, आज वही भाई उसका आदर्श बन गया था। अब विजय में भी काफी बदलाव आ गया था। वह न सिर्फ अपने माता-पिता का सम्मान करने लगा था, बल्कि अपनी पत्नी प्रीति की बातों को भी ध्यान से सुनने और समझने लगा था। पहले जब प्रीति उसे समझाने की कोशिश करती थी, तो वह उसे डांटकर चुप कर देता था और कहता था, “तू औरत है और औरत की तरह ही रह।”
लेकिन अब प्रीति की समझदारी और संयम ने उसे घर में नई इज्जत दिला दी थी। गांव वाले भी अब विजय की काफी इज्जत करने लगे थे, क्योंकि उसका छोटा भाई अमित कलेक्टर बन गया था। वही लोग, जो कभी विजय को ताने मारते थे, आज उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
आज उसके घर की मिसालें दी जाती थीं। समय गुजरता गया और जब कलेक्टर साहब अमित की शादी हुई, तो उन्होंने अपनी पत्नी को पहले ही भाभी प्रीति के बलिदानों और त्याग के बारे में बता दिया। यह सुनकर अमित की पत्नी भी प्रीति का बहुत सम्मान करने लगी और उसे अपनी बड़ी बहन की तरह मानने लगी। पूरा परिवार अब एकजुट होकर रहने लगा। घर में फिर से खुशियां लौट आईं और माता-पिता यह सब देखकर बेहद खुश और गर्व महसूस करने लगे। उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनके दोनों बेटे अब समझदार हो गए हैं और उनकी बहू प्रीति ने परिवार को टूटने से बचा लिया।
इस तरह त्याग, संयम और समझदारी की मिसाल बनकर प्रीति ने अपने परिवार को फिर से जोड़ दिया। इस कहानी का उद्देश्य किसी को दुखी करना या किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। हमारा मकसद आपको जागरूक और सतर्क बनाना है, ताकि आप इन कहानियों से सीख लेकर समाज में सकारात्मक बदलाव का हिस्सा बन सकें।
यह कहानी कोई साधारण कहानी नहीं थी, बल्कि एक सत्य घटना पर आधारित थी। आपको यह घटना कैसी लगी? अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो कृपया इसे शेयर करें और कमेंट बॉक्स में “जय श्री राम” लिखें। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद। तब तक के लिए, जय हिंद!