बेटी को बंद करके चली गई थी 12 साल बाद आई तो

दोस्तों, 12 साल से बंद पड़े एक खंडहर मकान में अचानक एक महिला आती है और जोर-जोर से रोने लगती है। वह रोते हुए बार-बार कहती है, “मेरी बेटी कहां है? मेरी बेटी मुझे लौटा दो, मुझे मेरी बेटी से मिलवा दो।” तभी वहां एक नर्स आती है और उस महिला को पकड़कर थप्पड़ मार देती है। नर्स गुस्से में कहती है, “अब तुम्हें 12 साल बाद अपनी बेटी की याद आई है? ऐसी मां को जिंदा रहने का कोई हक नहीं है। तुम्हारी वजह से तुम्हारी बेटी ने इतना दर्द सहा।”

अब सवाल यह है कि वह महिला कौन थी, जो इतने साल बाद वहां आई और फूट-फूटकर रोने लगी? और नर्स ने उसे थप्पड़ क्यों मारा? इस पूरी घटना की सच्चाई जानने के लिए आगे पढ़ें।

नोएडा की यह कहानी एक सुनसान घर में रहने वाली सावित्री देवी की है, जो अकेले अपनी जिंदगी बिता रही थीं। उनका अपना कोई नहीं था, और वह ऐसा काम करती थीं, जिसकी वजह से उन्हें घर से बाहर निकलने का समय नहीं मिलता था। समय बीतता गया, और सावित्री देवी ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची को पालने और काम के बीच संतुलन बना पाना उनके लिए मुश्किल हो गया। धीरे-धीरे उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि घर में खाने-पीने का भी इंतजाम नहीं बचा।

आखिरकार, एक दिन सावित्री देवी ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसे शायद उन्हें कभी नहीं लेना चाहिए था। वह अपनी छह महीने की बच्ची को घर में बंद करके शहर चली गईं। उनका घर एक सुनसान इलाके में था, जहां लोगों का आना-जाना बहुत कम था। बच्ची भूख और प्यास से तड़पने लगी और पूरी रात रोती रही। अगली सुबह विजय नाम का एक व्यक्ति उस घर के पास से गुजर रहा था। बच्ची की रोने की आवाज सुनकर वह खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश करता है, मगर कुछ नजर नहीं आता। वह यह सोचकर चला जाता है कि घर में कोई होगा जो बच्ची का ध्यान रख रहा होगा।

लेकिन पूरे दिन विजय के मन में बच्ची की आवाज गूंजती रही। शाम को वह फिर से उसी रास्ते से लौटा और इस बार बच्ची की आवाज बहुत धीमी थी। विजय ने पत्थर से खिड़की का शीशा तोड़ा और अंदर दाखिल हुआ। उसने देखा कि बच्ची बिस्तर पर पड़ी थी, बुखार से तप रही थी और बहुत कमजोर हो चुकी थी। विजय ने तुरंत उसे गोद में उठाया, पानी पिलाया और पुलिस को सूचना दी। थोड़ी ही देर में पुलिस मौके पर पहुंची और बच्ची को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।

अस्पताल में डॉक्टरों ने बच्ची का इलाज शुरू किया। इस दौरान अस्पताल के कर्मचारी बच्ची का बहुत ख्याल रखते थे। वहीं, पूजा यादव नाम की एक नर्स बच्ची से बहुत जुड़ गई। पूजा भी अनाथ थी और उसने अपना बचपन अनाथालय में बिताया था। वह बच्ची को अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगी।

हालांकि, बच्ची के माता-पिता का कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस ने बच्ची को अनाथालय भेजने का फैसला किया। अगले दिन जब पूजा अस्पताल आई और बच्ची को वहां नहीं पाया, तो वह बेहद परेशान हो गई। स्टाफ ने उसे बताया कि बच्ची को अनाथालय भेज दिया गया है। यह सुनकर पूजा का दिल टूट गया। वह बच्ची को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहती थी और उसे अपना नाम देना चाहती थी।

आगे की कहानी पूजा के संघर्ष और उस बच्ची को अपनाने की जद्दोजहद की है। यह घटना न केवल मानवता का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किसी का अपनापन और प्यार किसी की जिंदगी को बदल सकता है।

पूजा अनाथालय का पता पूछने पहुंची तो स्टाफ ने उसे जानकारी दी। उन्होंने पूछा, “तुम उस बच्ची के पीछे क्यों हो? उसे क्यों ढूंढ रही हो?” पूजा ने कहा, “मैं उसे अपने साथ रखना चाहती हूं। मैं नहीं चाहती कि उसकी जिंदगी भी मेरी तरह बर्बाद हो।” यह सुनकर स्टाफ ने कहा, “तुम अभी अविवाहित हो, उस बच्ची की देखभाल कैसे करोगी?” पूजा ने भरोसे से जवाब दिया, “मैं किसी भी तरह उसका ध्यान रख लूंगी।”

इसके बाद पूजा ने अनाथालय जाकर बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू की। कागजी कार्यवाही पूरी होते ही वह बच्ची कानूनी रूप से पूजा की बेटी बन गई। पूजा उसे अपने घर ले आई और बड़े प्यार से उसकी देखभाल करने लगी। बच्ची के छोटे रहते पूजा उसे रोज़ अपने साथ अस्पताल ले जाती थी। जब वह बड़ी हुई तो पूजा ने उसका स्कूल में दाखिला करवाया। पूजा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अस्पताल का काम और बच्ची की परवरिश साथ-साथ कर रही थी। बच्ची को मां का प्यार देते हुए पूजा का खालीपन भर गया था। जब बच्ची उसे “मां” कहकर पुकारती, पूजा का दिल खुशी से भर जाता।

समय बीतता गया और बच्ची बड़ी होने लगी। एक दिन उसने पूजा से पूछा, “मां, मेरे पिताजी कहां हैं? स्कूल में सबके पापा उन्हें लेने आते हैं। मेरे पापा क्यों नहीं आते?” यह सवाल सुनकर पूजा बेचैन हो गई। उसे खुद भी बच्ची के असली माता-पिता के बारे में कुछ नहीं पता था। उसने बच्ची से कहा, “तुम्हें पापा की क्या जरूरत है? मैं ही तुम्हारी मां हूं और मैं ही तुम्हारे पापा हूं।” लेकिन बच्ची को संतुष्ट करने के लिए पूजा ने झूठ बोल दिया कि उसके पिताजी का एक दुर्घटना में निधन हो गया था। यह सुनकर बच्ची दुखी हो गई लेकिन कुछ नहीं बोली। उसने पूजा को ही अपना सबकुछ मान लिया।

हालांकि, पूजा जानती थी कि सच्चाई छिपाना हमेशा संभव नहीं होगा। उसने बच्ची के असली माता-पिता को ढूंढने का निश्चय किया। वह पुलिस के पास गई और कहा, “जिस बच्ची को मैंने गोद लिया है, उसके माता-पिता कौन हैं, यह जानना चाहती हूं।” पुलिस ने बताया कि पहले भी उन्होंने खोजबीन की थी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पूजा के आग्रह पर उन्होंने दोबारा जांच शुरू करने का आश्वासन दिया।

कुछ साल बीत गए लेकिन बच्ची के माता-पिता का कोई पता नहीं चला। पूजा की उम्मीदें धुंधली पड़ने लगीं, लेकिन वह पूरी तरह हार मानने को तैयार नहीं थी। एक दिन, अस्पताल जाते समय पूजा को एक घर से किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी। वह पास गई तो देखा, एक औरत फूट-फूट कर रो रही थी और कह रही थी, “मेरी बेटी कहां है? मुझे मेरी बेटी वापस चाहिए।” पूजा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे लगा कि यह औरत शायद बच्ची की मां हो सकती है।

पूजा उस महिला के पास गई और गुस्से में कहा, “तुम कैसी मां हो, जो अपनी बच्ची को अकेला छोड़कर चली गई? इतने सालों बाद तुम्हें उसकी याद आई है? धिक्कार है ऐसी मां पर!” महिला ने रोते हुए कहा, “मजबूरी में मैंने उसे छोड़ा। कोई मां अपनी बेटी को ऐसे नहीं छोड़ती।”

महिला ने बताया कि वह वेश्यावृत्ति में लिप्त थी। जब उसकी बेटी पैदा हुई, तो उसके ग्राहक उससे संबंध बनाने को तैयार नहीं थे। आर्थिक तंगी के कारण उसने अपनी बेटी को छोड़कर दूसरे शहर जाने का फैसला किया। पूजा को यह सुनकर गुस्सा आया। उसने कहा, “तुम्हारी वजह से उस बच्ची की जिंदगी बर्बाद हो रही है। क्या तुम्हें पता भी है कि एक मां का कर्तव्य क्या होता है?”

महिला ने सिर झुका लिया। उसकी आंखों में पछतावा साफ दिख रहा था। पूजा ने महसूस किया कि हालात जटिल हैं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि महिला की मजबूरी को समझे या उसकी लापरवाही को दोष दे। हालांकि, वह इस बात पर अडिग थी कि बच्ची के भविष्य के लिए उसे सही कदम उठाने होंगे।

पूजा ने सावित्री की आँखों में देखा तो उसे लगा कि उस महिला के दिल में कहीं न कहीं पछतावा था। हालांकि, अब सब कुछ बदल चुका था, और हालात संभालना उसके लिए आसान नहीं था। पूजा ने गंभीर स्वर में कहा, “क्या तुम्हें अपनी बेटी की परवाह है भी? एक मां होने के नाते तुम्हारी जिम्मेदारी क्या होती है, यह समझती हो? वह एक बच्ची है, जिसे अपने पिता और मां दोनों की जरूरत है। लेकिन तुमने उसे अकेला छोड़ दिया। अब वह तुमसे जवाब मांगती है।”

सावित्री देवी के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई। उसे महसूस हुआ कि वह अपनी बेटी के लिए कितनी लापरवाह रही थी। पूजा की बातों ने उसे अपनी भूल का एहसास दिला दिया। उसकी आँखों में आँसू थे, और वह सोचने लगी कि क्या अब भी ऐसा कुछ हो सकता है जिससे वह अपनी बेटी के जीवन में लौट सके।

लेकिन पूजा का निर्णय स्पष्ट था। उसने दृढ़ता से कहा, “आज से तुम अपनी बच्ची के बारे में सोचना छोड़ दो। वह अब मेरी जिम्मेदारी है। मैं उसे पाल-पोसकर बड़ा कर रही हूँ, उसकी ज़िंदगी संवार रही हूँ। तुम्हें अब कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन याद रखना, आज के बाद से तुम उससे मिलने की कोशिश भी मत करना। उसे भूल जाओ।”

सावित्री देवी ने पूजा की बातों को ध्यान से सुना। उसे यह समझ आ गया कि पूजा उसकी बेटी का पूरा ख्याल रख रही है। वह जान गई कि उसकी बेटी अब एक सुरक्षित और बेहतर माहौल में है। सावित्री ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “अगर तुम मेरी बेटी का ख्याल रख रही हो, तो मैं तुम्हारा धन्यवाद करती हूँ। मैं अब उसे परेशान नहीं करूँगी।”

पूजा को यह सुनकर सुकून मिला। सावित्री देवी ने अपनी बेटी को पूजा के साथ छोड़ने का फैसला कर लिया। पूजा ने बच्ची को अपना लिया और उसे एक नई जिंदगी देने की ठान ली। उस बच्ची के साथ रहते हुए पूजा ने अपने जीवन को भी एक नई दिशा दी। उसने न केवल बच्ची को प्यार और सुरक्षा का माहौल दिया, बल्कि खुद को भी एक नई उम्मीद और मकसद के साथ जीने का मौका दिया।

आज, वह बच्ची बड़ी हो चुकी है। वह पूजा के साथ दिल्ली में रहती है और यूपीएससी की तैयारी कर रही है। अपने सपनों को साकार करने के लिए वह पूरी लगन और मेहनत से जुटी हुई है। पूजा ने उसे हमेशा प्रेरित किया है और उसका साथ दिया है। अब वह लड़की आत्मविश्वास से भरी एक युवा महिला बन चुकी है।

दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर, जब वह अपनी किताबों के साथ निकलती है, तो उसकी आँखों में एक नई चमक होती है। उसे अपने संघर्ष और मेहनत का महत्व पता है। पूजा की परवरिश और समर्थन ने उसे वह ताकत दी है, जिसकी बदौलत वह अपने भविष्य को संवारने में जुटी है। अब, वह न केवल अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल कर रही है, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझती है।

पूजा ने उस बच्ची की जिंदगी में प्यार, सुरक्षा और विश्वास का बीज बोया, जिसने उसे एक मजबूत और प्रेरणादायक महिला बनने में मदद की। आज, दोनों के बीच का यह रिश्ता सिर्फ एक संरक्षक और बच्ची का नहीं है, बल्कि एक गहरी मातृत्व भावना का प्रतीक है।

एक दिन जब वह अपने सपनों की ओर बढ़ रही थी, उसने पूजा से कहा, “आपने मुझे फिर से जीने का मौका दिया है। मैं कभी भी आपको अपने जीवन से अलग नहीं कर सकती। मैं आपको गर्वित करना चाहती हूं।” यह सुनकर पूजा की आंखें भर आईं। उसने जवाब दिया, “तुम्हारी सफलता ही मेरी खुशी है। तुम्हारी मेहनत ही तुम्हारे भविष्य की चाबी है। मैं तुम पर गर्व करती हूं।”

इन दोनों के बीच का रिश्ता सिर्फ एक मां और बेटी का नहीं था, बल्कि एक सच्चे दोस्ती का उदाहरण भी था। पूजा ने उस लड़की को नई जिंदगी ही नहीं, बल्कि प्यार, समर्थन और प्रेरणा भी दी। आज वे दोनों अपने सपनों की ओर एक साथ बढ़ रहे हैं, यह साबित करते हुए कि कठिन से कठिन समय में भी उम्मीद और प्यार कभी खत्म नहीं होता।

इस कहानी को साझा करने का उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि आपको प्रेरित करना और जागरूक बनाना है।

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