मरा हुआ बेटा 25 साल बाद SP बनकर घर लौटा मां बाप ने धक्के देकर भगाया

दोस्तों, क्या हुआ जब 20 साल पहले मृत समझा गया बेटा एसपी बनकर अपने घर पहुंचा? मां-बाप ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया और उसे घर से बाहर धक्के देकर निकाल दिया। लेकिन इसके बाद एसपी साहब ने जो किया, वह सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इस सच्ची घटना के प्रमाण मैं आपको इस कहानी में आगे दूंगा। लेकिन इस घटना को शुरू करने से पहले आप सभी से निवेदन है कि इस कहानी को पूरा पढ़ने के बाद अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

2010 में रोहन की उम्र मात्र 6 साल थी। विजय सिंह और उनकी पत्नी लक्ष्मी ने निर्णय लिया कि वे अपने बेटे को लेकर एक धार्मिक यात्रा पर जाएंगे। विजय सिंह ने मन्नत मांगी थी कि जब उन्हें बेटा होगा, तो वे उसे केदारनाथ धाम और हिमाचल प्रदेश में स्थित अपने कुल देवता के मंदिर ले जाएंगे। उसी मन्नत को पूरा करने के लिए विजय सिंह, लक्ष्मी और उनका 6 साल का बेटा हिमाचल प्रदेश के चार धाम की यात्रा पर निकल पड़े।

लेकिन इस यात्रा के दौरान एक भयानक हादसा हुआ। बस दुर्घटना में विजय सिंह और लक्ष्मी तो सुरक्षित बच गए, पर उनका इकलौता बेटा, रोहन, इस हादसे में खो गया। यह घटना उनके जीवन का सबसे बड़ा दुख लेकर आई। रोहन का खोना उनके लिए असहनीय था, और वे भगवान को कोसने लगे। उन्होंने कहा, “हे भगवान, हम तो तुम्हारे दर पर आए थे, लेकिन तुमने हमारी सबसे प्यारी चीज छीन ली।”

हादसे के बाद विजय सिंह और लक्ष्मी ने रोहन को बहुत ढूंढा, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। कुछ लोगों का कहना था कि बच्चा खाई में गिर गया, तो कुछ का मानना था कि वह नदी में बह गया। तरह-तरह की बातें सुनने को मिलीं, लेकिन किसी को भी सच का पता नहीं चला। यह यात्रा उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ लेकर आई, जिसे वे कभी भुला नहीं सके।

जब विजय सिंह और लक्ष्मी को अपने 6 साल के बेटे के बारे में खबर मिली, तो उनका दिल टूट गया। वह उनका इकलौता बेटा था, जिसे लक्ष्मी ने विवाह के 8 साल बाद बड़ी मुश्किलों और तकलीफों के बाद पाया था। उस बेटे ने उनकी जिंदगी में खुशी लाई थी, लेकिन वह खुशी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकी। लक्ष्मी का हाल रो-रोकर बुरा हो गया था। विजय सिंह और लक्ष्मी उस अधूरी यात्रा से घर लौट आए, लेकिन उस यात्रा की यादें उनके जीवन में हमेशा बनी रहेंगी।

लक्ष्मी और विजय सिंह जब अपने गांव लौटे, तो गांव वालों ने उनसे ढेरों सवाल पूछे। “तुम्हारा बेटा कहां है?”, “क्या तुमने उसे ढूंढा नहीं?”, “क्या वह मिला नहीं?”—ऐसे अनेक सवालों से लक्ष्मी और विजय सिंह बेहद परेशान हो गए। भगवान की माया को कौन समझ सकता है। समय बीतता गया और लक्ष्मी और विजय सिंह अपने घर में अकेले रह गए।

उस घटना के बाद लक्ष्मी ने कभी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया। वह पूरी तरह टूट चुकी थी और हमेशा विजय सिंह से कहती, “मुझे अब इस दुनिया में कोई संतान नहीं चाहिए। भगवान ने मेरी सबसे बड़ी खुशी छीन ली है। अब मुझे और किसी खुशी की जरूरत नहीं।” विजय सिंह ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन लक्ष्मी मानने को तैयार नहीं होती थी।

समय बीतते-बीतते उस घटना को 20 साल हो गए, लेकिन लक्ष्मी और विजय सिंह अब भी उस सदमे से उबर नहीं पाए थे। उनका इकलौता बेटा, जिसे वे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे, उनसे बिछड़ गया था। मां-बाप का अपने बेटे से बिछड़ने का दुख वही समझ सकते हैं जो इसे झेलते हैं।

लेकिन कहते हैं, “भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं।” उस घटना के 20 साल बाद, वही बेटा अपने मां-बाप से मिलने वापस आया और वह भी एक एएसपी (पुलिस अधिकारी) बनकर। यह घटना किसी कहानी से कम नहीं लगती, लेकिन यह सच्ची घटना है।

दरअसल, जब रोहन (उनका बेटा) को 20 साल बाद पता चला कि उसके मां-बाप जिंदा हैं, तो उसने उन्हें ढूंढना शुरू किया। वह उसी गांव और उसी घर पहुंचा, जहां उसका जन्म हुआ था। जब रोहन अपने मां-बाप के सामने आया और बोला, “मैं आपका बेटा हूं,” तो मां-बाप को यकीन नहीं हुआ।

उन्होंने कहा, “अरे, यह तुम क्या मजाक कर रहे हो? हमारा बेटा तो 20 साल पहले हिमाचल प्रदेश की बस दुर्घटना में मर चुका था। तुम कौन हो और खुद को हमारा बेटा क्यों बता रहे हो?”

अब दोस्तों, विजय सिंह को यह शक हुआ कि कहीं यह व्यक्ति झूठा तो नहीं है, जो खुद को उनका बेटा बता रहा है। दरअसल, विजय सिंह के पास काफी धन-दौलत थी और वे एक संपन्न व्यक्ति थे। उनके जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं थी, बस वे संतान के सुख से वंचित थे। ऐसे में विजय सिंह को लगा कि हो सकता है यह व्यक्ति झूठा दावा कर मेरी संपत्ति हड़पने की कोशिश कर रहा हो। क्योंकि किसी अजनबी पर यूं ही भरोसा करना आसान नहीं होता।

जब एसपी साहब ने कहा, “आप यकीन मानिए, मैं आपका ही बेटा हूं,” तो विजय सिंह और उनकी पत्नी लक्ष्मी ने तुरंत इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, “यह नहीं हो सकता। हमारा बेटा तो 20 साल पहले ही मर चुका है। अब वह यहां कैसे आ सकता है?”

लेकिन लक्ष्मी, जो मां की ममता में लीन थीं, ने एसपी साहब के अंदर कुछ खास देखा। दरअसल, जब उनका बेटा रोहन 6 साल का था, उसकी गर्दन पर काले रंग का जन्म चिन्ह था। लक्ष्मी की नजर एसपी साहब की गर्दन पर पड़ी, तो उसने वही जन्म चिन्ह देखा। वह तुरंत विजय सिंह से बोली, “रुको! यह लड़का शायद सही कह रहा है। यह हमारा बेटा ही है।”

विजय सिंह यह सुनकर चौंक गए। उन्होंने कहा, “लक्ष्मी, क्या तुम पागल हो गई हो? तुम्हें सच में लगता है कि हमारा बेटा जिंदा है? क्या तुम्हें लगता है कि वह बस दुर्घटना में बच गया था? हमने उसे कितनी जगह ढूंढा, लेकिन वह हमें नहीं मिला।”

लक्ष्मी ने समझाते हुए कहा, “विजय, हमारे बेटे आर्य की गर्दन पर जो जन्म चिन्ह था, ठीक वही चिन्ह इस लड़के की गर्दन पर भी है।”

विजय सिंह ने लड़के की गर्दन ध्यान से देखी और बोले, “लक्ष्मी, ऐसा कहां लिखा है कि केवल हमारे ही बेटे की गर्दन पर ऐसा चिन्ह हो सकता है? यह किसी और के भी हो सकता है।”

लेकिन लक्ष्मी अपनी जिद पर अड़ी रहीं। उन्होंने कहा, “मां की ममता अपने बेटे को पहचान ही लेती है। यही हमारा बेटा है।”

यह सब देखकर एसपी साहब बोले, “मां-बाप, समझिए। मैं ही आपका बेटा हूं।”

विजय सिंह ने गंभीर स्वर में पूछा, “अगर तुम सच में हमारे बेटे हो, तो बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ था? तुम जिंदा कैसे बच गए?”

तब आर्य, जो अब एसपी साहब बन चुके थे, अपनी कहानी सुनाने लगे। उन्होंने बताया, “उस बस दुर्घटना में एक साधु महाराज भी सफर कर रहे थे। जब हादसा हुआ, मैं बस से नीचे गिरकर एक कोने में पत्थर से टकरा गया और उसी पत्थर के नीचे दब गया। इसी वजह से मुझे कोई देख नहीं पाया, क्योंकि मैं सिर्फ 5 साल का और बहुत छोटा था।”

आर्य ने आगे बताया, “दुर्घटना एक बड़े पत्थर के गिरने की वजह से हुई थी और उसी पत्थर के नीचे मैं दबा हुआ था। खोजबीन के दौरान भी मुझे कोई नहीं देख सका। लेकिन उस साधु महाराज की नजर मुझ पर पड़ी। उन्होंने मुझे उठाया और कहा, ‘बेटा, तुम्हारे घर वाले तो जा चुके हैं। अब पता नहीं तुम्हारा जन्म कहां हुआ, तुम कहां से आए हो और तुम्हारे माता-पिता कौन हैं।’ 5 साल की उम्र में मेरी याददाश्त भी कमजोर हो चुकी थी।”

आर्य ने गहरी सांस लेते हुए अपनी कहानी को आगे बढ़ाया। “दरअसल, जिन्होंने मेरी जान बचाई थी, वे साधु महाराज कोई साधारण साधु नहीं थे। ऐसा कहा जाता है कि वे साक्षात भगवान का ही एक रूप थे। जब दुर्घटना में मैं बुरी तरह घायल होकर पत्थरों के नीचे दबा पड़ा था, तब उन्हीं साधु महाराज ने मुझे देखा और अपनी झोपड़ी में ले जाकर मेरा उपचार किया। उन्होंने मेरी इतनी देखभाल की जैसे मैं उनका अपना बेटा हूं। लेकिन, एक साल बाद उन्होंने मुझे एक अनाथ आश्रम में भेजने का निर्णय लिया।”

लक्ष्मी ने हैरानी से पूछा, “अनाथ आश्रम में? लेकिन क्यों?”

आर्य ने समझाया, “साधु तो चलते भले होते हैं, वे एक जगह पर नहीं रुकते। उन्होंने सोचा कि अगर मैं उनके साथ रहा, तो मेरा भविष्य अंधकारमय हो सकता है। वे मुझे दुनिया की कठिनाइयों से बचाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मुझे एक अनाथ आश्रम में जमा करा दिया। उस अनाथ आश्रम में रहकर ही मैंने पढ़ाई-लिखाई की और कड़ी मेहनत से एसपी के पद तक पहुंचा।”

विजय सिंह और लक्ष्मी भावुक होकर आर्य की बात सुन रहे थे। आर्य ने आगे कहा, “मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के अनाथ आश्रम में रहता था। मेरे आगे-पीछे कोई नहीं था। अनाथ आश्रम में कई बार मुझे मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कई बार तो मेरी तबीयत इतनी खराब हुई कि मेरे बचने की उम्मीदें भी खत्म हो गईं। लेकिन, किसी चमत्कारी शक्ति ने मुझे हर बार बचा लिया। शायद वही चमत्कारी शक्ति थी।”

आर्य ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “मेरे जीवन में संघर्षों की कोई कमी नहीं रही। लेकिन मां, बाबूजी, आपको ढूंढने की कहानी भी कम चमत्कारी नहीं है।”

विजय सिंह ने उत्सुकता से पूछा, “यह सब तो ठीक है, लेकिन तुम्हें हमारा पता किसने दिया? और तुम्हें कैसे पता चला कि हम यहीं रहते हैं और आज भी जिंदा हैं?”

आर्य ने बताया, “दरअसल, मैं गाजियाबाद में एसपी के पद पर नियुक्त था और वहीं सरकारी आवास में रह रहा था। अपनी ड्यूटी में व्यस्त था कि एक दिन अचानक एक चमत्कारी साधु मेरे घर आए।”

लक्ष्मी ने हैरानी से पूछा, “चमत्कारी साधु?”

आर्य ने सिर हिलाते हुए कहा, “हां, वे साधु महाराज जैसे ही मुझे देखे, तुरंत बोले, ‘तुम एक अनाथ बच्चे हो।’ मैंने चौंक कर पूछा, ‘महाराज, आपने कैसे पहचाना?’ तब उन्होंने मेरे चेहरे को ध्यान से देखते हुए कहा, ‘तुम्हारे साथ बचपन में एक भयानक दुर्घटना घटी थी। उसी दुर्घटना में तुम अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे और तब से एक अनाथ आश्रम में पले-बढ़े हो।'”

आर्य ने थोड़ा रुककर गहरी सांस ली और आगे कहा, “मैं उनकी बातें सुनकर अवाक रह गया। ऐसा लगा जैसे उन्हें मेरी जिंदगी की हर एक बात पता हो। मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘महाराज, आप यह सब मजाक तो नहीं कर रहे?'”

आर्य ने हैरानी से साधु महाराज से पूछा, “आपको किसी ने मेरे बारे में कुछ बताया होगा। मुझे भी पता है कि मैं अनाथ आश्रम में पला-बढ़ा हूं। लेकिन यह आप क्या कह रहे हैं कि मेरे मां-बाप जिंदा हैं और मेरे साथ एक दुर्घटना घटी थी?”

साधु महाराज ने गंभीर स्वर में कहा, “बेटा, मुझे इस धरती पर हर एक व्यक्ति का अगला और पिछला सब दिखाई देता है।”

आर्य ने मन ही मन सोचा, “शायद यह साधु महाराज पागल हैं या ऐसे ही बने हुए हैं।” तब आर्य ने थोड़ी नाराजगी के साथ कहा, “महाराज, आपको अगर दक्षिणा चाहिए तो आप सीधे-सीधे बोलिए, लेकिन ऐसी फालतू की बातें मत कीजिए।”

इसके बाद आर्य ने अपनी जेब से 50 रुपये निकाले और साधु महाराज को देते हुए कहा, “ठीक है महाराज, यह लीजिए और जाइए। मुझे अपना काम करने दीजिए।”

साधु महाराज ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “तुम मेरा अपमान कर रहे हो। मैं तुम्हें सच बता रहा हूं कि तुम्हारे मां-बाप, लक्ष्मी और विजय सिंह, आज भी जिंदा हैं और वे आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।”

यह सुनकर आर्य चिढ़ गया और बोला, “महाराज, बस बहुत हुआ। आप मेरे मजे ले रहे हैं। जाइए, मुझे अपना काम करने दीजिए। वरना मैं आपको भी जेल में बंद कर दूंगा।”

आर्य ने कड़क आवाज में कहा। तब साधु महाराज मुस्कुराते हुए बोले, “बेटा, तुम चाहे मुझे जेल में बंद कर दो या थप्पड़ मारो, लेकिन जो बात मैं तुम्हें बता रहा हूं, वह सच है।” इतना कहने के बाद साधु महाराज ने आर्य के सिर पर हाथ रखा। अचानक, आर्य दो मिनट के लिए अपनी पुरानी जिंदगी में चला गया। उसकी आंखों के सामने वह सारी घटनाएं घूमने लगीं जो साधु महाराज ने उसे बताई थीं। उसने अपने माता-पिता, लक्ष्मी और विजय सिंह को देखा, दुर्घटना का वह मंजर देखा और वह पल भी जब वह उनसे बिछड़ गया था।

जैसे ही आर्य ने आंखें खोलीं, वह हैरान रह गया। साधु महाराज वहां से गायब हो चुके थे। यह चमत्कार कोई छोटा-मोटा चमत्कार नहीं था। आर्य के रोंगटे खड़े हो गए। बाद में जब आर्य ने यह सारी घटना अपने मां-बाप को बताई, तो लक्ष्मी और विजय सिंह को भी यकीन होने लगा कि हां, शायद यही उनका खोया हुआ बेटा है।

आर्य ने उन्हें बताया, “जब साधु महाराज ने मेरे सिर पर हाथ रखा था, तो मैंने वह सब देख लिया था कि आप लोग कहां रहते हैं और आज भी जिंदा हैं। साधु महाराज ने मुझे यह भी बताया था, ‘अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं है, तो उस जगह पर एक बार जाकर देख लो जो स्थान तुमने अपने मन में देखा है।'”

साधु महाराज की बात मानकर आर्य अपने मां-बाप से मिलने गांव आ गया। जब उसने अपनी पूरी कहानी उन्हें सुनाई, तो लक्ष्मी और विजय सिंह जोर-जोर से रोने लगे। विजय सिंह ने भावुक होकर कहा, “लक्ष्मी, मैंने तुमसे कहा था भगवान के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं।”

दरअसल, उस दुर्घटना के बाद बस में जितने भी यात्री सवार थे, उन्होंने मान लिया था कि आर्य अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन विजय सिंह और लक्ष्मी ने कभी यह नहीं माना। हालांकि बाहर से वे सबको यही कहते थे कि उनका बेटा मर चुका है, लेकिन उनकी अंतरात्मा जानती थी कि उनका बेटा शायद आज भी कहीं न कहीं जिंदा है।

कहते हैं न, इंसान की अंतरात्मा ही जानती है कि उसके अतीत से जुड़ी कोई चीज अगर अधूरी है, तो उसके बारे में संकेत मिलते ही हैं। जब आर्य घर लौटा और उसने अपने मां-बाप को देखा, तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। इतने सालों का बिछड़ा और वह पल जब उसे यकीन हो गया था कि वह अनाथ है—सब कुछ उसकी आंखों के सामने घूमने लगा।

सारी घटना सुनने के बाद लक्ष्मी और विजय सिंह ने आर्य को गले लगाया और फूट-फूट कर रोने लगे। वे कहने लगे, “बेटा, हमें माफ कर दो जो हमने तुम्हें पहचानने में भूल की और तुम्हें झूठा समझा।”

तब आर्य ने कहा, “कोई बात नहीं, मां-बाबूजी। 25 साल बाद अगर कोई बेटा अपने मां-बाप से मिलने आएगा, तो शक होना लाजमी है।”

यह घटना पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। गांव वाले विजय सिंह और लक्ष्मी से मिलने आने लगे और कहने लगे, “तुम दोनों बहुत खुशनसीब हो जो तुम्हारी जिंदगी में यह दिन आया है। साक्षात भगवान ने तुम्हें तुम्हारी खुशियां लौटाई हैं।”

विजय सिंह के घर में त्योहार जैसा माहौल बन गया था। हर तरफ खुशी, हंसी और आंखों में आंसू थे। गांव के लोग इस घटना को चमत्कार मान रहे थे।

दोस्तों, इस घटना को आप चाहे इत्तेफाक मानें या चमत्कार, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है। अगर आप मानते हैं कि वाकई ऐसा हो सकता है, तो इसका मतलब है कि आपके दिल में अभी भी इंसानियत और विश्वास बाकी है।

दोस्तों, इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। हमारा मकसद आपको जागरूक और सतर्क बनाना है, ताकि आप इन कहानियों से प्रेरणा लेकर समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकें। यह कहानी साधारण नहीं, बल्कि एक सच्ची घटना पर आधारित थी।

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आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। जल्द ही एक नई कहानी में मुलाकात होगी। तब तक के लिए धन्यवाद!

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