रंजीत मल्होत्रा, एक जाने-माने और प्रतिष्ठित बिजनेसमैन, जो अपनी ईमानदारी, दृढ़ संकल्प और समाज में उच्च सम्मान के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी छवि हमेशा एक आदर्श नागरिक की रही थी, लेकिन उनकी ही नौकरानी ने ऐसा षड्यंत्र रचा कि उनकी पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लग गई। यह जानना रोचक होगा कि कैसे वह इस जाल में उलझ गए और फिर अपनी समझदारी और धैर्य से उन्होंने इस संकट से खुद को बाहर निकाला।
रंजीत के साथ जो धोखा हुआ, उसने उन्हें गहरे सदमे और पीड़ा में डाल दिया। यह धोखा इतना अप्रत्याशित था कि वह पूरी तरह से स्तब्ध रह गए। उनके भीतर एक अजीब सी हलचल मची हुई थी, जिसमें आश्चर्य और क्रोध दोनों ही शामिल थे। उनकी नाराजगी इस हद तक बढ़ गई थी कि इसका असर उनके पूरे शरीर पर साफ-साफ झलकने लगा। वह गुस्से से कांपने लगे, मानो उनकी नसें फट पड़ने को तैयार हों। अपनी तीव्र भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश में उन्होंने अपनी मुट्ठियां इतनी जोर से भींच लीं कि उनके नाखून उनकी हथेलियों में चुभने लगे। लेकिन इसके बावजूद, उनके दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गई थीं कि उन्हें शांत करना लगभग नामुमकिन सा लग रहा था।
उन्हें यह भय सता रहा था कि अगर ममता, जो रसोई में काम में व्यस्त थी, अचानक वहां आ गई और उनकी हालत पर नज़र डाल ली, तो वह निश्चित ही पूछेगी कि ऐसा क्या घटित हुआ है जो आप इतने चिंतित और परेशान नज़र आ रहे हैं। उनके दिमाग में एक पल के लिए यह विचार आया कि पूरी घटना पुलिस को बताकर शिकायत दर्ज करवा दी जाए, ताकि मामला सुलझ सके। लेकिन तुरंत ही उन्हें अहसास हुआ कि इस स्थिति में गलती केवल सामने वाले की नहीं थी, बल्कि उनकी भी कुछ हद तक जिम्मेदारी बनती थी। यदि इस पूरी घटना की सच्चाई उजागर हो गई, तो उनके लिए समाज में सिर उठाकर चलना भी मुश्किल हो जाएगा, और वे किसी को अपनी सफाई देने लायक नहीं रहेंगे।
पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर रखी अपनी मेडिकल रिपोर्ट को जल्दी से अखबारों के मोटे ढेर के नीचे छिपा दिया। उनकी सांसें तेज चल रही थीं, मानो कोई बड़ा बोझ उनके सीने पर आ पड़ा हो। इसके बाद उन्होंने अपना मोबाइल उठाया और सीधे प्रॉपर्टी डीलर को फोन मिलाया। बिना किसी भूमिका के, उन्होंने कठोर स्वर में डीलर को प्लॉट का सौदा रद्द करने का आदेश दे दिया। डीलर की कोई बात सुनने तक का धैर्य उन्होंने नहीं दिखाया और झट से फोन काट दिया।
हमेशा शांत और संयमित रहने वाले रंजीत मल्होत्रा इस बार असामान्य रूप से तनावग्रस्त और बेचैन नजर आ रहे थे। उनका चेहरा चिंता की लकीरों से भरा हुआ था, जैसे किसी गंभीर समस्या ने उन्हें जकड़ रखा हो। इतना तनाव उन्होंने उस समय भी महसूस नहीं किया था, जब उन्हें गहरी साजिश का शिकार बनाया गया था और सारी परिस्थितियां उनके खिलाफ थीं। फिर भी, इस बार वह अपनी पूरी ताकत लगा रहे थे कि उनके भीतर की उथल-पुथल और बेचैनी किसी को भी दिखाई न दे।
रंजीत मल्होत्रा एक बेहद सम्मानित और ख्यातिप्राप्त व्यक्ति थे। शहर के सबसे व्यस्त और प्रमुख बाजार में उनका एक विशाल ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम था, जहाँ हर वर्ग के लोग खरीदारी के लिए आते थे। इसके साथ ही वे साड़ियों के बड़े थोक व्यापारी भी थे, जिनका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। व्यापारियों के बीच उनकी अलग ही पहचान थी, क्योंकि वे कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष के रूप में अपने दायित्वों को ईमानदारी और निष्ठा से निभाते थे। उन्होंने कभी भी किसी गलत काम के बारे में सोचना तो दूर, उस दिशा में कदम भी नहीं बढ़ाया।
उनके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी, और नाम तथा प्रतिष्ठा तो पहले से ही उनके साथ थी। बावजूद इसके, उनका स्वभाव हमेशा से ही बेहद सरल और विनम्र रहा। वे जरूरतमंदों की मदद करने में कभी पीछे नहीं हटते थे, और उनके व्यक्तित्व में ऐसी गरिमा थी कि हर कोई उन्हें आदर की दृष्टि से देखता था। हालांकि वे अकेले जीवन बिताते थे, लेकिन अपनी मेहनत और लगन के बल पर उन्होंने हर पहलू में सफलता हासिल की थी, जिससे उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत बन गई थी।
उनकी तरक्की से कई लोग जलते थे, लेकिन उनके दिल में एक टीस हमेशा बनी रहती थी। शादी के 12 साल बाद भी वे पिता नहीं बन सके थे, और उनकी पत्नी ममता की गोद सूनी थी। रंजीत और ममता की शादीशुदा जिंदगी किसी खूबसूरत सपने जैसी थी। उनकी शुरुआत हंसी-खुशी से हुई थी। शादी के वक्त ममता की खूबसूरती देखकर रंजीत के दोस्त तक जल उठे थे और मजाक में कहा करते थे, “भाई, तुम तो बड़े किस्मत वाले हो। हीरोइन जैसी भाभी मिली है।”
ममता वाकई बेहद खूबसूरत थीं। शादी के 12 साल बाद भी उनकी सुंदरता और फिटनेस वैसी ही थी। इस बीच, रंजीत के घर में देवी नाम की एक लड़की पिछले 10 सालों से काम कर रही थी। वह जब 10-11 साल की थी, तब से उनके घर में थी। देवी खुशमिजाज और मेहनती थी, इसलिए रंजीत और ममता उसे बेहद पसंद करते थे। घर में बच्चों की कमी के कारण दोनों उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे। देवी ने घर का हिस्सा बनकर, हर काम में ममता का हाथ बंटाया और उनके दिल में खास जगह बना ली।
लेकिन जब देवी की शादी हुई, तो ममता पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, मगर रंजीत काफी बदल गए। देवी की शादी उनके लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। शादी के बाद के दो साल रंजीत के जीवन में काफी बदलाव लेकर आए। इस दौरान ममता, गोद सूनी होने की वजह से और भी हताश रहने लगीं। वह खुद को ही दोष देती थीं। पहले ईश्वर में विश्वास न रखने वाली ममता अब पूरी तरह धार्मिक हो गई थीं और संतान प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास कर चुकी थीं। लेकिन जब कुछ भी काम नहीं आया, तो उन्होंने हार मान ली।
शादी के चार साल बाद दोनों ने फैसला किया कि अब उन्हें परिवार बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के सभी उपाय बंद कर दिए। उन्हें भरोसा था कि वे सफल होंगे क्योंकि दोनों ही स्वस्थ थे। लेकिन समय बीतता गया और उनकी कोशिशें नाकाम रहीं। रंजीत ममता को दिलासा देते रहते कि जो होना है, वही होगा। उन्होंने डॉक्टरों से भी सलाह ली और कई उपाय अपनाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। रंजीत समझाते, “चिंता मत करो, हम वैसे ही खुश रहेंगे।” लेकिन जब रंजीत काम पर चले जाते, तो ममता अकेली रोती रहतीं।
डॉक्टर ने आखिरकार रंजीत को अपनी भी पूरी तरह से जांच कराने की सलाह दी। अब तक रंजीत ने इसे गंभीरता से लेने की जरूरत महसूस नहीं की थी। हालांकि बाहर से वे एकदम शांत और निश्चिंत नजर आते थे, लेकिन उनके मन के भीतर अनगिनत चिंताएँ घर कर चुकी थीं। ये चिंताएँ उन्हें हर पल परेशान कर रही थीं, जिसके कारण उनका ध्यान अपने काम पर भी ठीक से केंद्रित नहीं हो पाता था। धीरे-धीरे इस मानसिक तनाव का असर उनके शरीर पर भी दिखने लगा, और वे निरंतर शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे थे।
काम का दबाव रंजीत पर इतना बढ़ गया था कि वह थकान और तनाव से जूझने लगे थे। पहले शांत और गंभीर रहने वाले रंजीत अब छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगे थे। घर में वह किसी तरह अपने गुस्से पर काबू रखते, लेकिन शोरूम पर कभी कर्मचारियों तो कभी ग्राहकों से उलझ पड़ते। घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते, पर नौकरानी देवी पर छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाते। ममता उन्हें समझाती, “अब देवी जवान हो गई है। इस पर ज्यादा गुस्सा करना ठीक नहीं।”
रंजीत अक्सर जवाब में कहते, “तुमने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसलिए यह मनमानी करती है।” इसके बावजूद देवी पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वह बेफिक्री से घर में रहती और काम करती, जैसे वह उसी का घर हो। हालांकि, ममता भी अब महसूस करने लगी थी कि देवी का व्यवहार बदल रहा है। कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी अब कई बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी। रंजीत और ममता ने उसे ऐसा करते देखा भी, लेकिन अनदेखा कर दिया। वे सोचते कि वह किसी जरूरत के लिए ऐसा कर रही होगी।
इधर, बलबीर नाम का एक लड़का अकसर रंजीत के घर के बाहर नजर आने लगा। ममता ने जब उसे देवी को इशारे करते देखा, तो उसने देवी को डांटा और लड़के को भी फटकारा। हालांकि, इसके बाद उसका आना-जाना कम हुआ, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं हुआ।
एक रात, जब रंजीत आधी नींद में वाशरूम जाने के लिए उठे, तो उन्हें बरामदे से धीमी-धीमी खुसरफुसर की आवाजें सुनाई दीं। जिज्ञासा से भरे हुए, वह तुरंत दरवाजे की ओर बढ़े और धीरे से उसे खोलकर बाहर झाँकने लगे। जैसे ही उन्होंने कदम बाहर रखा, उन्होंने देखा कि कोई व्यक्ति अंधेरे का सहारा लेकर जल्दी-जल्दी दीवार पर चढ़कर दूसरी ओर भाग रहा था। रंजीत को यह सब कुछ अजीब और संदिग्ध लगा। उन्होंने तुरंत बरामदे की लाइट जलाने का फैसला किया। रोशनी होने पर उनकी नज़र देवी पर पड़ी, जो अपना दुपट्टा संभालते हुए और कपड़े ठीक करते हुए तेज़ी से पीछे की ओर जाती दिखी।
यह सब देखकर रंजीत को बेहद गुस्सा आया। उन्होंने सारी बात ममता को बताई, तो ममता ने देवी को जमकर डांटा और यह भी हिदायत दी कि ऐसा दुबारा नहीं होना चाहिए। इसके बाद देवी का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। वह रंजीत और ममता से दूर-दूर रहने लगी और दोनों की उपेक्षा करने लगी। देवी के इस रवैये से रंजीत और ममता को उसकी चिंता होने लगी। शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के माता-पिता से उसकी शादी जल्दी कर देने की बात कह दी थी।
अचानक देवी का व्यवहार फिर से बदल गया। ममता के साथ तो वह सामान्य व्यवहार करती रही, लेकिन रंजीत से वह हंसते-मुस्कुराते हुए इस तरह बातें करने लगी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। रंजीत ने महसूस किया कि जब भी वह अकेली होती, उदास रहती। कभी-कभी वह फोन पर बात करते हुए रोने लगती। जब उससे वजह पूछी जाती, तो वह कोई बहाना बनाकर टाल देती।
एक दिन तो उसने सारी हदें पार कर दीं। हमेशा की तरह उस दिन भी ममता सुबह-सवेरे मंदिर जाने के लिए घर से निकली हुई थी। रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी में व्यस्त थे, अपनी फाइलें और अन्य जरूरी कागजात संभाल रहे थे। अचानक, देवी रंजीत के पास आई, मुस्कुराते हुए उनकी ओर झुकी और उनके गाल को चुटकी में भरकर बोली, “आप तो बड़े स्मार्ट लगते हैं, सचमुच, मुझे आप बहुत ही अच्छे लगते हैं।”
ममता के मंदिर जाने के बाद देवी ने धीरे-धीरे रंजीत के पास आकर अपना स्थान बना लिया। वह उनके इतने करीब आ गई कि रंजीत को उसकी हरकतों में कुछ असामान्य सा महसूस हुआ। देवी का यह अनजाना व्यवहार रंजीत के लिए असहज करने वाला था। उन्होंने तुरंत स्थिति को भांपते हुए खुद को वहां से अलग कर लिया और बिना एक शब्द कहे अपने कमरे की ओर बढ़ गए। कमरे में पहुंचने के बाद भी उनका मन शांत नहीं हो पाया। दिनभर उनके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आते-जाते रहे, जो उन्हें बेचैन करते रहे।
रंजीत की उलझन बढ़ती जा रही थी। वह बार-बार खुद से यही सवाल कर रहे थे कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है? क्या इसका कोई कारण है, और अगर है तो क्या यह उचित है? एक तरफ उनका दिल उन्हें समझाने की कोशिश करता कि जो हो रहा है, उसमें उनकी कोई गलती नहीं, तो दूसरी तरफ उनका दिमाग उन्हें यह एहसास दिलाता कि यह सब ठीक नहीं है। सही और गलत के इस संघर्ष ने उनके मन को और अधिक अशांत कर दिया। वह इस दुविधा में फंसे रहे कि आखिर इस परिस्थिति में उन्हें क्या कदम उठाना चाहिए।
अगले दिन सुबह होते ही रंजीत के मन में दो तरह की भावनाएँ उमड़ रही थीं। एक तरफ, वह ममता के मंदिर जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, तो दूसरी तरफ, उनका अंतर्मन उन्हें सचेत कर रहा था कि वह जो सोच रहे हैं, वह सही नहीं है। जैसे ही ममता मंदिर गई, देवी ने दरवाजा बंद कर लिया। इस बीच, रंजीत बहाने से बाथरूम में चले गए। उनका दिल उन्हें बाहर आने के लिए कह रहा था, लेकिन रोकने वाली आवाज कमजोर थी। शायद इसी वजह से वह जल्दी से नहा-धोकर बाहर आ गए।
देवी रसोई में काम कर रही थी। उसके चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह नाराज है। रंजीत सोफे पर बैठकर उसका इंतजार करने लगे, लेकिन वह उनके पास नहीं आई। फिर उन्होंने पानी लाने के बहाने उसे बुलाया। देवी ने गिलास मेज पर रखते हुए जाते-जाते धीमे स्वर में कहा, “नपुंसक।”
रंजीत स्तब्ध रह गए। देवी के एक शब्द ने उनके मन को झकझोर दिया। डॉक्टर की बात ने उनके मन में जो शक पैदा किया था, देवी के कहने से वह और गहरा हो गया। उनका चेहरा उतर गया। उसी समय ममता मंदिर से लौट आईं। पति के चेहरे पर चिंता देख पूछ बैठीं, “सब ठीक है ना? तबीयत खराब है क्या?”
रंजीत के पास कोई जवाब नहीं था। अगले दिन उन्होंने नहाने में जल्दी नहीं की। जैसे ही दरवाजा बंद हुआ, देवी उनके सामने खड़ी हो गई। रंजीत ने उसकी ओर देखा ही था कि वह बोल पड़ी, “मैं कैसी लग रही हूं?”
“बहुत सुंदर,” रंजीत ने कहा, लेकिन यह बात उनके दिल से नहीं, बस उनके गले से निकली थी। देवी उनकी गोद में बैठ गई। रंजीत कुछ कहते, इससे पहले ही उसने उनका हाथ पकड़कर पूछा, “आपको मैं पसंद नहीं हूं क्या?”
“नहीं… नहीं, ऐसी बात नहीं है,” रंजीत ने जवाब दिया। लेकिन इसके आगे वह कुछ नहीं कह पाए। ममता के आने का बहाना बनाकर रंजीत जल्दी से बाथरूम में चले गए।
यह सिलसिला 2-3 दिन तक यूं ही चलता रहा। अब रंजीत पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे। धीरे-धीरे उन्हें देवी की हरकतें पसंद आने लगीं। 40 के करीब पहुंच चुके रंजीत को यह अहसास हो रहा था कि एक 18 साल की लड़की उन पर मोहित है। यह अहसास उनके अंदर एक नया आत्मविश्वास जगा रहा था, लेकिन साथ ही उन्हें गलत दिशा में भी धकेल रहा था। उनके अंदर का पुरुष अहंकार बढ़ने लगा था।
फिर भी, वह खुद को रोकने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन एक सुबह, वह अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए। जब देवी उनके पास आकर बैठी, तो रंजीत खुद पर काबू खो बैठे।
नहाने के दौरान, जो खुशी उन्होंने महसूस की थी, वह अब अपराधबोध में बदल गई। पूरे दिन वह सही और गलत के बीच झूलते रहे। अगले दिन रंजीत ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए। ममता को यह बात अजीब लगी, जबकि देवी उन्हें गहरी निगाहों से देख रही थी। रंजीत अब खुद को देवी की ओर खिंचता हुआ महसूस कर रहे थे।
लेकिन आज रंजीत का मन बेचैन था। उनके विचार उन्हें कचोट रहे थे, “लड़की तो मासूम है, पर मैंने गलत किया। उसे समझ नहीं आई, लेकिन मेरी तो समझ थी।” उनके अंदर पछतावे की आग जल रही थी। यह आग तब और भड़क उठी, जब ममता के मंदिर जाने के बाद देवी ने उन्हें बताया कि इस महीने उसे माहवारी नहीं हुई। यह सुनते ही रंजीत के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें लगा जैसे उनकी दुनिया उजड़ गई हो।
रंजीत ने गहरी सांस लेते हुए खुद को कोसना शुरू कर दिया। उनके मन में एक ही ख्याल घूम रहा था, “मैंने एक मासूम लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी है।” यह अपराधबोध उनके मन को अंदर तक जलाने लगा। वह खुद को लाख समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन दिल के बोझ को हल्का नहीं कर पा रहे थे। हालांकि, उन्हें यह एहसास था कि अब पछतावे का कोई फायदा नहीं है। जो हो चुका था, उसे बदला नहीं जा सकता था। उनका ध्यान अब एकमात्र समाधान खोजने पर था।
उन्होंने देवी से गहरी चिंता के साथ कहा, “हमें तुम्हारी जिंदगी को इस मोड़ पर खराब होने से पहले कुछ करना होगा। मैं तुरंत दवा का इंतजाम करता हूं। सब कुछ सही हो जाएगा, तुम देखना।” रंजीत की आवाज में उम्मीद और चिंता का मिश्रण था। लेकिन देवी ने उनकी बात को ठुकराते हुए साफ मना कर दिया। उसने दवा लेने से पूरी तरह इनकार कर दिया। रंजीत ने बार-बार उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, लेकिन देवी अपनी बात पर अड़ी रही। उसकी आंखों में दृढ़ता और अपने फैसले के प्रति अडिगता साफ झलक रही थी।
रंजीत की आत्मा भीतर ही भीतर और भी गहराई से तड़पने लगी। उनके मन में बार-बार यह विचार आने लगा, “जो भी नेक काम मैंने जीवन में अब तक किए थे, इस एक बड़ी गलती ने उन सभी को मिट्टी में मिला दिया। अब मैं पापी बन गया हूं, मेरे पास खुद को माफ करने का कोई आधार नहीं बचा।” ऐसे ही बेचैनियों के बीच देवी ने उन्हें एक और अप्रत्याशित झटका दिया। उसने बताया कि उसके पिता रंजीत से मिलना चाहते हैं। यह सुनते ही रंजीत के भीतर डर और शर्म का सैलाब उमड़ पड़ा। उनका आत्मविश्वास डगमगा गया, लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए, हिम्मत जुटाकर, वह देवी के घर की ओर चल पड़े।
उस दिन रामप्रसाद, जो लंबे समय से ड्राइवर की भूमिका निभाते हुए हमेशा रंजीत के सामने सिर झुकाए रहते थे, एकदम अलग और बदले हुए नजर आए। उनके व्यवहार में गजब का आत्मविश्वास झलक रहा था। उन्होंने रंजीत पर हाथ उठाने की कोशिश तो नहीं की, लेकिन अपनी बात रखते हुए जमकर खरी-खोटी सुना दी। उनके शब्दों में गुस्सा और पीड़ा दोनों थे। रंजीत, जो अब तक हमेशा खुद को ऊंचा समझता आया था, इस बार चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा। उसने अपनी गलती मानते हुए बेहद विनम्रता से रामप्रसाद से माफी मांगी और उनसे इस समस्या के समाधान का रास्ता सुझाने की गुजारिश की। रामप्रसाद ने थोड़ी देर सोचने के बाद एक उपाय बताया—रंजीत को देवी की शादी के सभी खर्चों का प्रबंध करना होगा और बाकी जिम्मेदारियों को भी निभाना होगा।
‘‘हां…हां, जितने पैसे चाहिए होंगे, मैं दे दूंगा.’’ रंजीत ने राहत की सांस लेते हुए पूछा, ‘‘शादी कब करनी है?’’
‘‘अगले हफ्ते. बलबीर का कहना है कि देरी करना सही नहीं होगा.’’
‘‘बलबीर? वही लड़का जो आवारा घूमता रहता है? तुम्हें वही मिला है शादी के लिए?’’
‘‘वह नालायक…आपसे तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’
बलबीर का नाम सुनकर रंजीत चौंक गए, लेकिन कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इसके अलावा, कुछ गहने भी उपहार में देने पड़े.
जब शादी के बाद रहने की बात आई, तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खुलवा दिया. हालांकि यह उन्होंने खुशी से नहीं किया, बल्कि दबाव में आकर करना पड़ा. अपनी इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों की कठपुतली बने हुए थे.
जब ममता ने फ्लैट देने पर ऐतराज किया, तो रंजीत ने उसे समझाया, ‘‘देवी अपने ही घर पली-बढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसके लिए इतना करना जरूरी है.’’
शादी के सात महीने बाद ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन तारीखें जोड़ने की कोशिश करते रहे, लेकिन हिसाब नहीं लगा पाए. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’
ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. जब वे देवी के घर पहुंचे, तो बलबीर ने बच्चा उनकी गोद में डालते हुए कहा, ‘‘बिल्कुल बाप पर गया है.’’
रंजीत सन्न रह गए. ममता ने भी कहा, ‘‘देखो न, बच्चे के नाक-नक्श बलबीर जैसे ही हैं.’’
अगले दिन बलबीर रंजीत के शोरूम पर पहुंचा और बोला, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’
रंजीत ने कहा, ‘‘इसमें बुराई नहीं है, लेकिन ममता से पूछना पड़ेगा.’’
बलबीर ने शर्त रखी कि फ्लैट उसके नाम कराया जाए और कामधंधा शुरू करने के लिए 25 लाख रुपए दिए जाएं.
रंजीत सब समझ गए. जब उन्होंने रकम कम करने की बात की, तो बलबीर ने ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. रंजीत को एहसास हुआ कि अब झगड़ा बढ़ाने का कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की, और थोड़ी समझाइश के बाद ममता देवी के बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हो गई.
बच्चे को गोद लेने की बात के साथ ही रंजीत ने वकील को फ्लैट देवी के नाम कराने के दस्तावेज तैयार करने के लिए कह दिया था। 25 लाख के लिए रंजीत को प्लॉट बेचना था, और उन्होंने इसके लिए प्रॉपर्टी डीलर को भी तैयार कर दिया था। लेकिन इन सभी कदमों के बावजूद ममता का मन बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। उसने रंजीत से कहा, “बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए।”
रंजीत को लगा, उनकी जांच तो पहले ही हो चुकी है। आखिर देवी का बच्चा उनके पुरुषत्व का नतीजा था। फिर भी, ममता की बात मानने के लिए उन्होंने अपनी जांच कराई। लेकिन जब रिपोर्ट आई, तो उसे देखकर रंजीत के होश उड़ गए। वह इतना हिल गए कि खड़े नहीं रह सके और सोफे पर बैठ गए। तभी उन्हें देवी की एक पुरानी फोन कॉल की बात याद आई।
जब देवी ने पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया था। उसके बाद देवी ने फोन पर किसी से कहा था, “तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश कर रही हूं, थोड़ा समय दो, तब तक वह वीडियो…” उसी समय रंजीत वहां आ गए थे। देवी उन्हें देखकर सन्न रह गई थी। जब रंजीत ने पूछा, “क्या हुआ?” तो देवी ने बहाना बना दिया कि वह सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी।
अब रंजीत को समझ में आया कि देवी फोन पर बलबीर से बात कर रही थी। बलबीर के पास देवी का कोई वीडियो था, जिससे वह उसे दबाव में डाल रहा था। रिपोर्ट में साफ हो चुका था कि देवी का बच्चा बलबीर का था। रंजीत को अपनी मूर्खता पर शर्म महसूस हुई, लेकिन अब जो गलती हो चुकी थी, उसकी सजा तो उन्हें भुगतनी ही थी।
उन्होंने तुरंत वकील और प्रॉपर्टी डीलर को फोन कर प्लॉट का सौदा और फ्लैट के पेपर तैयार करने से रोक दिया। अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था और न ही प्लॉट बेचना था।
इसके बाद रंजीत ने ममता को अपने पास बुलाते हुए गंभीर स्वर में कहा, “ममता, मेडिकल रिपोर्ट आ गई है। रिपोर्ट में यह साफ-साफ लिखा है कि मेरे शरीर में पिता बनने की क्षमता नहीं है। डॉक्टरों के अनुसार, मैं संतान पैदा करने में पूरी तरह से असमर्थ हूं। यह सच्चाई जानकर मैं बहुत परेशान हूं और समझ नहीं पा रहा कि अब क्या करूं।”
ममता को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि रंजीत अपने नपुंसक होने की बात इतनी सहजता और खुशी के साथ क्यों जाहिर कर रहे थे। वह सोच में डूबी हुई थी कि आखिर उनके चेहरे पर इस विषय को लेकर कोई दुख या शर्मिंदगी क्यों नहीं झलक रही थी।