
दोस्तों, क्या आप जानते हैं कि एक दरोगा ने एसीपी मैडम को, जो सादा कपड़ों में सड़क पर ऑटो चला रही थीं, रोक लिया? दरोगा ने उनके हाथ को पकड़ा, और फिर जो हुआ, वो आपको हैरान कर देगा!
देखिए दोस्तों, हल्की बारिश की बूंदें मुंबई की सड़कों को और भी रहस्यमय बना रही थीं। तंग गलियों में एक पीला-हरा ऑटो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। स्टीयरिंग पर हाथ जमाए बैठी एक महिला, जिसकी आंखों में गहराई से आत्मविश्वास झलक रहा था, सड़क के हर मोड़ को ध्यान से देख रही थी। उसका नाम सीमा शेख था—नाम भले ही आम लगता हो, लेकिन उसके इरादे बिल्कुल साधारण नहीं थे। रात के अंधेरे में अकेली महिला का ऑटो चलाना कुछ असामान्य तो जरूर था। सड़क किनारे खड़े दरोगा राजीव ठाकुर ने गहरी नजरों से उसे देखा और मन में कई सवाल उठने लगे।
आंखों से उसे देखा, वह मुंबई पुलिस में कई सालों से था, लेकिन उसकी असली पहचान कुछ और थी। पुलिस की वर्दी की आड़ में वह एक बड़ा खेल खेल रहा था। जैसे ही ऑटो उसके सामने से गुजरा, उसने हाथ उठाकर रुकने का इशारा किया। सीमा ने एक सेकंड के लिए रियर व्यू मिरर में उसकी आंखों में झांका, फिर गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी।
“अरे रुक साली!” राजीव ने झटपट आगे बढ़कर गाड़ी के सामने आकर उसे रोक लिया। सीमा ने अचानक ब्रेक मारे। टायरों की घिसने की आवाज सुनकर आसपास के लोग चौकन्ना हो गए। राजीव ठाकुर ने झपटकर उसका हाथ पकड़ लिया।
“इतनी रात को अकेली कहां जा रही हो, मैडम?” उसकी आवाज में अजीब सा दबदबा था। सीमा ने बिना घबराए उसकी पकड़ से हाथ छुड़ाते हुए ठंडी आवाज में कहा, “हाथ हटाइए, इंस्पेक्टर साहब, वरना अंजाम आपके हक में नहीं होगा।”
राजीव हंसा, लेकिन उसकी हंसी अधूरी रह गई। उसने देखा कि सीमा की आंखों में डर की जगह कुछ और था, एक गहरी साजिश। “तू अकेली है या कोई गैंग है पीछे?” राजीव ने गुस्से में सवाल किया और ऑटो की तलाशी लेने लगा।
जैसे ही उसने पीछे का पर्दा हटाया, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। अंदर एक छोटा सा काला बैग रखा था जिसका ज़िप आधा खुला था। उसमें नोटों की ₹500 के नए और पुराने गड्डियां रखी थीं।
नोटों का बंडल देखते ही राजीव ने तेजी से बैग उठाया और नोटों को उलट-पलट कर देखा। उसकी सांसें तेज हो गईं। रात के अंधेरे में उसने गुस्से से कहा, “तुम यही धंधा कर रही थी?” लेकिन उसके माथे पर पसीने की बूंदें साफ झलकने लगीं। सीमा ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “असली खेल तो अब शुरू होगा, दरोगा साहब।”
राजीव ने शंका भरी निगाहों से उसे देखा। तभी सीमा ने अपनी जेब में हाथ डाला और कुछ बाहर निकाला—एक बैज, जिस पर लिखा था “क्राइम ब्रांच अंडरकवर ऑपरेशन।” राजीव के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई। उसका गला सूखने लगा। वह बड़बड़ाया, “साले, यह जाल मुझ पर ही बिछाया गया था।”
सीमा एक कदम आगे बढ़ी। उसकी आंखों में शिकारी जैसी चमक थी। उसने कहा, “दरोगा साहब, आप तो बहुत चालाक थे, ना? सोचिए, जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होगा, तो आप कहां होंगे?”
राजीव ने घबराकर इधर-उधर देखा। अंधेरे में दूर खड़ी दो काली एसयूवी के दरवाजे धीरे-धीरे खुलने लगे। एसयूवी के दरवाजे खुलते ही ब्लैक ऑप्स यूनिट के चार जवान बाहर निकले। उनके काले कपड़े, चेहरे आधे ढके हुए, और हाथों में गन्स थीं।
राजीव ठाकुर को अब पहली बार असली खतरे का एहसास हुआ। उसने खुद को संभालते हुए कहा, “यह क्या मजाक है?”
सीमा ने ठंडी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “मजाक? तुमने कितने लोगों की ज़िंदगियां बर्बाद की हैं, उसका हिसाब अब होगा।”
दरोगा साहब, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, ड्रग डीलिंग, ब्लैक मनी… और ऊपर से खुद को ईमानदार पुलिस वाला बताते हो? राजीव के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं। उसने धीरे-से जेब में पड़ी सर्विस रिवॉल्वर पर हाथ रखा।
“गलती मत करना, इंस्पेक्टर।”
इतने में एसयूवी से एक लंबा-चौड़ा आदमी उतरा। डीसीपी करण सिंह—क्राइम ब्रांच का सबसे तेजतर्रार अफसर। रणवीर की निगाहें राजीव पर टिकीं, और उसकी आवाज में ठहराव था, “हम बहुत पहले से तुम्हें ट्रैक कर रहे थे। अब खेल खत्म।”
राजीव ने तेजी से दिमाग दौड़ाया। ‘अगर बचना है, तो सिर्फ एक ही रास्ता बचा है।’ अचानक, बिजली की तेजी से मुड़कर उसने अपनी रिवॉल्वर निकाली और सीमा की ओर तान दी।
धमाक!
हवा में गोली गूंजी, लेकिन अगले ही पल रिवॉल्वर उसके हाथ से छिटक कर दूर जा गिरी। डीसीपी करण सिंह ने अपनी गन सीधी उसकी छाती पर टिका दी।
“अब कोई रास्ता नहीं बचा, ठाकुर।”
राजीव की सांसें तेज हो गईं। “नहीं! मैं अभी भी बच सकता हूं!” वह बड़बड़ाया और अचानक पूरी ताकत से भागने के लिए मुड़ा।
लेकिन अंधेरे में कुछ ऐसा हुआ जिसने सारा खेल पलट दिया।
जैसे ही राजीव ठाकुर दौड़ा, अंधेरे से कुछ भारी चीज तेजी से उसकी ओर बढ़ी। वह उसकी टांगों से टकराई, और संतुलन खोकर वह जोर से जमीन पर गिर पड़ा।
एक पुलिस डॉग, जो अब गुर्राते हुए उसके ऊपर झुका था, ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। खेल खत्म! डीसीपी करण सिंह की गूंजती आवाज ने माहौल को और तनावपूर्ण कर दिया। राजीव अभी भी बौखलाया हुआ था और किसी भी हालत में वहां से बच निकलना चाहता था, लेकिन अब बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था।
सीमा उसके करीब आई। उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और स्क्रीन ऑन की। “देखो दरोगा साहब, यहां तुम्हारी सारी करतूतें रिकॉर्ड हो चुकी हैं। पुलिस डिपार्टमेंट ही नहीं, सोशल मीडिया पर भी तुम्हारा असली चेहरा बेनकाब होगा,” सीमा ने तीखे लहजे में कहा।
राजीव ने फोन स्क्रीन की ओर नजर दौड़ाई और उसका चेहरा सफेद पड़ गया। वीडियो में वह माफिया डॉन अनिल खान से रिश्वत लेते हुए साफ दिखाई दे रहा था। “यह नहीं हो सकता,” वह बड़बड़ाया। तभी डीसीपी करण सिंह ने इशारा किया, “हथकड़ी डालो इसे।”
राजीव ने झटके से पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन तभी एक काली एसयूवी की हेडलाइट्स अचानक जल उठीं। टायरों की तेज चरमराहट के साथ गाड़ी उनकी ओर बढ़ने लगी। “कवर लो!” डीसीपी चिल्लाए, लेकिन तब तक एसयूवी तेजी से आई और सीधे ऑटो से टकरा गई। जोरदार धमाके के साथ ऑटो उलट गया और चारों ओर धूल का गुब्बार छा गया।
डीसीपी और उनकी टीम ने तुरंत अपने हथियार निकालकर गाड़ी की ओर निशाना साधा। गाड़ी का दरवाजा खुला और उसमें से तीन नकाबपोश लोग बाहर निकले।
बाहर निकले उनके हाथों में ऑटोमेटिक गन्स चमक रही थीं। “कोई हिलने की जरूरत नहीं,” एक भारी आवाज गूंज उठी। सीमा ने उस आवाज को तुरंत पहचान लिया—अनिल शेख, मुंबई का कुख्यात अंडरवर्ल्ड डॉन, अब खुद सामने आ चुका था।
“हम तो सोच रहे थे कि सिर्फ ठाकुर ही हमारा आदमी है, पर लगता है कि अब हमें कुछ और पुलिस वालों को भी खरीदना पड़ेगा,” अनिल ने सिगरेट जलाते हुए कहा। दरोगा राजीव ठाकुर, जो अब भी जमीन पर घायल अवस्था में पड़ा था, हल्के से मुस्कुराया।
“अब देखते हैं कौन किसे पकड़ता है,” डीसीपी ने तेजी से इशारा किया। उनकी दो कमांडो टीम के जवान धीरे-धीरे बैकअप टीम को सिग्नल देने के लिए पीछे हटने लगे। लेकिन तभी अनिल शेख ने गन का ट्रिगर दबाने की धमकी दी। “अगर ट्रिगर दबा दिया, तो कोई नहीं बचेगा, डीसीपी साहब,” उसने अपनी गन करण सिंह के सिर पर तान दी।
माहौल ठहर सा गया। सीमा ने चारों ओर नजर दौड़ाई। एक तरफ अनिल के लोग थे, दूसरी तरफ घायल राजीव ठाकुर और बीच में करण सिंह, जिनकी जान अब खतरे में थी। “अब खेल असली मोड़ पर है,” उसने सोचा। तभी अंधेरे में कहीं से हल्की लाल रोशनी चमकी। सीमा ने उसे देख लिया—यह बैकअप टीम का गुप्त सिग्नल था।
“बस एक सेकंड,” उसने मन ही मन कहा। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ करती, अनिल शेख गुस्से से चिल्लाया, “बहुत हो गया खेल! तुम सबको यहां से जिंदा नहीं जाने दूंगा!”
अनपटी पर गन जोर से दबा दी, लेकिन अनिल खान की आंखों में डर का नामोनिशान नहीं था। “तुम भूल रहे हो, अनिल, कि यह मुंबई है। यहां पुलिस से बचकर भागना इतना आसान नहीं,” राजीव ठाकुर ने गुस्से और बेचैनी के मिले-जुले भाव के साथ कहा।
अनिल खान सिर्फ मुस्कुराया। इससे पहले कि वह कुछ कहता, बॉस ने ठंडी आवाज में कहा, “इनसे बात करने का कोई फायदा नहीं। गोली मारो और यहां से निकलो।”
राजीव की आंखों में उम्मीद की आखिरी चमक थी। उसे अब भी लग रहा था कि अनिल उसे बचा लेगा। पर तभी ठांय! एक गोली चली।
राजीव की आंखें फटी रह गईं। उसके सीने से खून बहने लगा। उसे गोली अनिल खान ने ही मारी थी। राजीव कांपते हुए जमीन पर गिर पड़ा।
“बॉस, ये… ये क्या किया?” उसकी आवाज कांप रही थी।
अनिल खान ने ठंडी और सख्त आवाज में कहा, “तू अब हमारे किसी काम का नहीं। ठाकुर, पुलिस के हाथ लगने से पहले तुझे खत्म कर देना ही सही लगा।”
सीमा और करण सिंह इस नतीजे से हैरान नहीं थे। वे जानते थे कि क्राइम की दुनिया में गद्दारों को यही अंजाम मिलता है। लेकिन अब माहौल और भी खतरनाक हो चुका था।
अनिल खान और उसके तीन आदमी पूरी तरह हावी हो चुके थे। सीमा ने धीमी सांस ली। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे अपनी बेल्ट के पास पहुंच रही थीं।
और तभी, अंधेरे में छिपी रेड लाइट अचानक तीन बार चमकी। बैकअप टीम तैयार थी। बस एक इशारे की देर थी।
फिर चारों ओर से गोलियों की बौछार शुरू हो गई।
हो गई कवर लो! करण सिंह गरजे और तुरंत नीचे झुक गए। स्पेशल फोर्स ने चारों ओर से अनिल खान और उसके आदमियों को घेर लिया। तेज फायरिंग के बीच, सीमा ने एक छलांग में अनिल खान की गन छीन ली और उसे जमीन पर धकेल दिया।
“खेल खत्म, अनिल खान,” सीमा ने उसकी गर्दन पर गन टिकाते हुए कहा। अनिल खान के आदमी एक-एक कर ढेर हो चुके थे। उसे हथकड़ी पहनाते हुए सीमा ने कहा, “बहुत कोशिश की बचने की, लेकिन अब कानून से नहीं भाग सकता।”
सीमा ने एक नजर राजीव ठाकुर के ठंडे पड़े शरीर पर डाली और धीरे से बोली, “क्राइम की दुनिया में गद्दारी का यही अंजाम होता है।”
बैकअप टीम ने मोर्चा संभाल लिया। अनिल खान को पुलिस की गाड़ी में डाल दिया गया। मुंबई के अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा अध्याय आज खत्म हो चुका था। लाल और नीली लाइट्स चमकाती पुलिस की गाड़ियां अनिल खान को ले जा रही थीं।
सीमा ने पीछे मुड़कर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मिशन पूरा हुआ, सर।”
दूर गहरी रात को देखते हुए जवाब आया, “लेकिन यह सिर्फ एक लड़ाई थी, जंग अभी बाकी है।”
सीमा ने अपना बैज जेब में रखा, टूटी हुई गाड़ी की खिड़कियों की तरफ देखा और इंजन ऑन कर दिया। “चलो, अगला मिशन इंतजार कर रहा है।”
यह कहानी कोई साधारण कहानी नहीं थी, बल्कि एक सत्य घटना पर आधारित थी।
ऐसी ही प्रेरणादायक कहानियों से जुड़े रहें। सुरक्षित और सतर्क रहें। अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद!