SP साहिबा भिखारी बनकर अस्पताल पहुंची |डॉक्टर ने मारा थप्पड़ बाहर निकाला

दोस्तों, क्या हुआ जब एसपी मैडम ने गरीब का रूप धरकर अस्पताल जाने का सोचा? डॉक्टर ने न केवल उन्हें थप्पड़ मारा, बल्कि धक्का देकर बाहर निकाल दिया और इलाज करने से मना कर दिया। इसके बाद जो हुआ, वह जानकर आप हैरान रह जाएंगे। इस चौंकाने वाली कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है…

बिहार के खानपुर गांव में एक परिवार रहता था, जिसमें पति-पत्नी राहुल वर्मा और राधिका वर्मा अपनी इकलौती बेटी सुमन वर्मा के साथ रहते थे। सुमन की उम्र 26 साल थी, जबकि राहुल और राधिका उम्रदराज हो चुके थे। राहुल वर्मा पेशे से किसान थे और उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इसके बावजूद उन्होंने कड़ी मेहनत कर खेतों में काम करते हुए अपनी बेटी को पढ़ाया-लिखाया।

सुमन बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी और अपने माता-पिता का गर्व थी। राहुल वर्मा का सपना था कि उनकी बेटी पढ़-लिखकर इतनी बड़ी शख्सियत बने कि पूरे गांव में उनका नाम रोशन हो। बेटा न होने के बावजूद राहुल और राधिका ने सुमन को बेटे की तरह पाला और उसे हर संभव सुविधा देने की कोशिश की। उनकी मेहनत और सुमन की लगन ने इस परिवार को एक मिसाल बना दिया।

सुमन अपने माता-पिता के सपनों को टूटते हुए नहीं देखना चाहती थी। इसलिए वह बचपन से ही पढ़ाई में मन लगाती और हर कक्षा में पहला स्थान प्राप्त करती थी। जब सुमन की 12वीं की परीक्षा समाप्त हुई, तो उसके स्कूल के प्रिंसिपल ने उससे पूछा कि वह भविष्य में क्या बनना चाहती है। सुमन ने बताया कि उसका सपना एक पुलिस अधिकारी बनने का है। इस पर प्रिंसिपल ने उसे यूपीएसएससी परीक्षा की तैयारी करने का सुझाव दिया।

सुमन ने पूरी लगन से परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और दो साल से कड़ी मेहनत कर रही थी। अब उसकी उम्र 26 वर्ष हो चुकी थी। लेकिन उसके माता-पिता, राहुल वर्मा और राधिका वर्मा, इस बात को लेकर चिंतित थे कि सुमन की शादी अभी तक नहीं हुई है। दोनों बढ़ती उम्र के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे थे और उनकी यह चिंता बढ़ती जा रही थी।

राहुल वर्मा ने सुमन से कई बार कहा, “हम तुम्हारे लिए ऐसा रिश्ता ढूंढेंगे जो तुम्हें पढ़ाई से नहीं रोकेगा। तुम शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हो।” लेकिन सुमन हर बार यही जवाब देती, “मैं पढ़-लिखकर पहले एक बड़ी पुलिस अधिकारी बनूंगी और आपको इस गरीबी से मुक्त करूंगी। उसके बाद ही मैं शादी के बारे में सोचूंगी। राहुल वर्मा और राधिका वर्मा सुमन के इस निर्णय से खुश तो थे, लेकिन उनके मन में यह चिंता बनी हुई थी कि अगर उम्र निकल गई तो उनकी बेटी का विवाह हो पाएगा या नहीं।

एक दिन की बात है, राहुल वर्मा जी गर्मी के मौसम में खेत में मजदूरी कर रहे थे। अचानक उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई। खेत में काम कर रहे मजदूर तुरंत उन्हें खानपुर गांव के सरकारी अस्पताल लेकर गए। जब राहुल वर्मा जी को अस्पताल में भर्ती किया गया, तो अस्पताल के कर्मचारी ने राहुल की बेटी सुमन को फोन करके स्थिति की जानकारी दी। सुमन और उसकी मां राधिका वर्मा तुरंत सरकारी अस्पताल पहुंच गईं। सुमन अपने पिता की हालत देखकर बहुत परेशान हो गई, क्योंकि उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी।

अस्पताल के डॉक्टर ने सुमन को बताया कि यह एक छोटे गांव का अस्पताल है, जहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। उन्होंने सलाह दी कि राहुल वर्मा जी को जल्द से जल्द किसी बड़े अस्पताल में ले जाया जाए, ताकि उनकी जान बचाई जा सके। सुमन ने यह बात अपनी मां को बताई और उन्हें पिता को शहर के बड़े अस्पताल में ले जाने का सुझाव दिया। लेकिन राधिका वर्मा ने चिंता जताई कि उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे प्राइवेट अस्पताल की फीस भर सकें।

सुमन तुरंत घर गई और अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की। उसने अपनी मां की बचत से भी कुछ पैसे निकाले। हालांकि, यह रकम केवल इतनी थी कि वे एंबुलेंस का किराया देकर गांव से शहर तक पहुंच सकें। सुमन ने सोचा कि पहले वे शहर के अस्पताल पहुंच जाएं, फिर वह डॉक्टर से बात करके कर्ज लेकर किसी तरह इलाज का खर्चा जुटाएगी। सुमन ने तुरंत एंबुलेंस वाले से बात की और एंबुलेंस बुलाकर अपने पिता को शहर के अस्पताल ले जाने की तैयारी की।

सुमन अपने पिता को लेकर पास के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में पहुंचती हैं। एंबुलेंस से उतरते ही अस्पताल के कर्मचारी तुरंत उनके पिता, राहुल वर्मा जी, को ऑपरेशन थिएटर में ले जाते हैं। कुछ समय बाद, एक डॉक्टर सुमन के पास आता है और बताता है कि उनके पिता का तुरंत ऑपरेशन करना होगा। डॉक्टर सुमन से अस्पताल की फीस जमा करने को कहता है।

सुमन डॉक्टर को बताती हैं कि उनके पास इस समय पैसे नहीं हैं। वह बताती हैं कि एंबुलेंस का किराया देने के बाद उनके पास कुछ भी नहीं बचा है, लेकिन वह वादा करती हैं कि धीरे-धीरे अस्पताल का पूरा बिल चुका देंगी। डॉक्टर उनकी बात नहीं मानता और सुमन से फीस जमा करने का आग्रह करता है। जब सुमन फीस नहीं दे पातीं, तो डॉक्टर उनसे वहां से जाने के लिए कह देता है।

सुमन को पता चलता है कि उसी इलाके में कुछ किलोमीटर दूर एक संस्था द्वारा संचालित अस्पताल है, जहां इलाज मुफ्त होता है। सुमन देर नहीं करतीं और अपने पिता को एंबुलेंस में लेकर उस अस्पताल पहुंच जाती हैं। वहां राहुल वर्मा जी का इलाज शुरू हो जाता है। पहले दिन उनका इलाज ठीक से होता है, क्योंकि अस्पताल संस्था द्वारा संचालित था और वहां इलाज मुफ्त था।

अगले दिन कुछ डॉक्टर सुमन से कहते हैं कि उनके पिता की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है और उनके लिए एक विशेष दवाई की जरूरत होगी। इसके लिए 1 लाख रुपये जमा करने होंगे। सुमन डॉक्टरों से विनती करती हैं कि उनके पास पैसे नहीं हैं और इसीलिए वह इस अस्पताल में आई हैं। वह वादा करती हैं कि जितना भी खर्चा होगा, वह धीरे-धीरे चुका देंगी।

सुमन की बात सुनकर डॉक्टर हंसने लगते हैं और कहते हैं कि जितना मुफ्त इलाज होना था, हो गया। आगे इलाज करवाना है तो पैसे जमा करने होंगे, वरना उनके पिता के बचने की संभावना नहीं है। सुमन और उनकी मां राधिका वर्मा डॉक्टरों से हाथ जोड़कर, पैरों में गिरकर मिन्नतें करती हैं, लेकिन डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजता।

आखिरकार, डॉक्टर सिक्योरिटी गार्ड को बुलाकर सुमन और उनकी मां को अस्पताल से बाहर निकाल देते हैं। कुछ ही समय बाद, राहुल वर्मा जी को भी अस्पताल से डिस्चार्ज कर सुमन और उनकी मां के हवाले कर दिया जाता है।

राहुल जी की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी। सुमन और राधिका को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। ऐसे में सुमन अपने पिता राहुल वर्मा को लेकर दोबारा सरकारी अस्पताल पहुंचती है। वहां डॉक्टर उनकी जांच करते हैं और बताते हैं कि निजी अस्पताल ने उनका सही इलाज नहीं किया। डॉक्टरों का कहना था कि राहुल वर्मा को किसी नई दवाई की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें केवल ऑक्सीजन की जरूरत थी। अगर उस अस्पताल ने समय पर उचित इलाज किया होता, तो उनकी स्थिति में काफी सुधार आ सकता था।

सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन कुछ ही घंटों में राहुल वर्मा ने दम तोड़ दिया। इसके बाद डॉक्टर सुमन और राधिका को पूरी सच्चाई बताते हैं। जैसे ही सुमन को यह पता चलता है कि उसके पिता की मौत निजी अस्पताल की लापरवाही और लालच की वजह से हुई, वह फूट-फूटकर रोने लगती है। उसे याद आता है कि अस्पताल ने उससे पैसों की मांग की थी, और जब उसने पैसे नहीं दिए, तो उन्होंने जानबूझकर उसके पिता का सही इलाज नहीं किया।

इस घटना के बाद सुमन के मन में अस्पताल के खिलाफ गहरी नफरत पैदा हो जाती है। कुछ दिनों बाद वह अपने पिता का अंतिम संस्कार करती है और उसी समय यह ठान लेती है कि वह अस्पताल की सच्चाई पूरी दुनिया के सामने लाएगी। सुमन ने तय किया कि वह सबको बताएगी कि कैसे कुछ डॉक्टर अपने पेशे को व्यवसाय बना रहे हैं और गरीबों से मनमाने पैसे वसूलते हैं। पैसे न मिलने पर मरीजों के साथ इस तरह की अमानवीय घटनाएं करते हैं।

हालांकि, सुमन को यह भी अहसास था कि उसके जैसे गरीब की आवाज शायद कोई नहीं सुनेगा। वह जानती थी कि अगर वह पुलिस के पास भी जाती है, तो डॉक्टर पैसे देकर पुलिस का मुंह बंद कर देंगे। धीरे-धीरे समय बीतता गया, लेकिन सुमन और राधिका की आर्थिक स्थिति और खराब होती चली गई। मजबूरी में राधिका ने घर-घर जाकर झाड़ू-पोछा करने का काम शुरू कर दिया, ताकि दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सके।

सुमन अब नौकरी की तलाश में जुट गई थी। कुछ समय बाद उसे एक पार्ट-टाइम नौकरी मिल गई, जिसमें वह दिन में कुछ घंटे काम करती थी। वहीं रातभर जागकर यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करती थी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और एक साल गुजर गया। साल भर की कड़ी मेहनत के बाद सुमन की यूपीएससी परीक्षा का दिन आ जाता है। सुमन पूरी लगन और मेहनत के साथ परीक्षा देती है। जब परिणाम आते हैं, तो सुमन पूरे जिले में पहला स्थान हासिल करती है और खानपुर की सबसे बड़ी टॉपर बन जाती है।

यह खबर जब गांव में फैलती है, तो हर कोई सुमन पर गर्व महसूस करता है। सुमन ने यूपीएससी परीक्षा पास कर आईपीएस अधिकारी बनने का सपना पूरा कर लिया था। कुछ महीनों तक उसकी ट्रेनिंग चलती है और फिर उसे पहली पोस्टिंग अपने ही शहर खानपुर में मिलती है। यह वही शहर था, जहां एक समय उसके पिता को अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन वहां इलाज करने से इनकार कर दिया गया था। सुमन के मन में उस अस्पताल के प्रति अब भी गहरी नाराजगी थी, लेकिन अपनी नई जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए वह कोई बड़ा कदम उठाने से बचती है।

अपनी पोस्टिंग के बाद सुमन ईमानदारी और मेहनत से काम करती है। वह गांव में हो रहे अपराधों पर लगाम लगाती है और अवैध व्यापार को बंद करवाने में सफलता हासिल करती है। धीरे-धीरे समय बीतता गया।

एक दिन, सुमन अपनी पुलिस गाड़ी में कहीं जा रही थी। रास्ते में वह उसी अस्पताल के सामने पहुंचती है, जहां उसके पिता का इलाज करने से मना कर दिया गया था। अस्पताल के बाहर कुछ लोग बैठे हुए दिखाई देते हैं, जो बहुत रो रहे थे। सुमन तुरंत अपनी गाड़ी रोकती है और बाहर निकलकर उन लोगों के पास जाती है। उनसे बात करने की कोशिश करती है ताकि उनकी परेशानी को समझ सके।

तो वे लोग बताते हैं, “मैडम, हम अपने पिता को इस अस्पताल में इलाज के लिए लाए थे। कुछ दिनों तक इन्होंने सही से और मुफ्त में इलाज किया, लेकिन अब ये हमसे बहुत ज्यादा पैसों की मांग कर रहे हैं। हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम वह रकम चुका सकें, और हमारे पिता की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है। अब हमें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें।”

सुमन यह सब सुनकर समझ गई कि आज भी उस अस्पताल में इसी तरह का गलत व्यापार हो रहा है। कुछ डॉक्टर मनमाने पैसे मांगकर गरीबों को परेशान कर रहे हैं। सुमन ने उन गरीबों को कुछ पैसे दिए और कहा, “आप अपने पिता को किसी और अस्पताल में ले जाकर इलाज करवा लें। उन्हें तुरंत यहां से ले जाइए।”

यह कहकर सुमन वहां से चली जाती है, लेकिन उसके मन में उस अस्पताल और वहां के डॉक्टरों के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश भर जाता है।

सुमन ने मन ही मन ठान लिया था कि इन डॉक्टरों को उनकी गलतियों की सजा दिलानी होगी, वरना ये लोग गरीबों को पूरी तरह से लूटते रहेंगे। सुमन ने एक योजना बनाई और अगले ही दिन, भिखारी का भेष धरकर, एक पुलिस कांस्टेबल को मरीज बनाकर उसी अस्पताल में पहुंच गई। डॉक्टरों ने कांस्टेबल को भर्ती कर लिया, लेकिन भिखारी के रूप में सुमन और कांस्टेबल को पहचान नहीं पाए।

कुछ घंटों तक इलाज के नाम पर दिखावा चलता रहा। फिर वही हुआ जो सुमन ने सोचा था। डॉक्टरों ने सुमन को केबिन में बुलाकर कहा, “आपके पति की स्थिति गंभीर है। उनकी जान बचाने के लिए आपको बड़ी रकम चुकानी होगी।” सुमन, जो एक शातिर पुलिस अधिकारी थी, पहले से कैमरे लेकर आई थी। कांस्टेबल के कपड़ों में भी एक छोटा कैमरा छिपा हुआ था।

जब डॉक्टरों ने पैसे मांगे, तो सुमन ने उनसे कहा, “यह तो एक चैरिटेबल अस्पताल है, यहां इलाज मुफ्त होना चाहिए। फिर आप मुझसे पैसे क्यों मांग रहे हैं?” डॉक्टरों ने कहा, “मुफ्त में सब कुछ नहीं होता। अगर आपके पति की जान बचानी है, तो पैसे देने होंगे।” यह सुनते ही सुमन ने डॉक्टर को जोरदार थप्पड़ मार दिया और तुरंत पुलिस को बुला लिया।

कुछ ही पलों में पुलिस अस्पताल पहुंच गई। डॉक्टर समझ नहीं पाए कि यह सब कैसे हो गया। सुमन ने खुलासा किया, “मैं एक आईपीएस ऑफिसर हूं और यह जो मरीज है, वह मेरा पति नहीं, बल्कि एक पुलिस कांस्टेबल है।” ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते ही कांस्टेबल ने सुमन को बताया, “मैडम, ये लोग मरीजों को अंदर ले जाते हैं, लेकिन उनका इलाज नहीं करते। मुझे भी यह लोग बेहोशी की दवा देकर अंदर बंद रखे थे। ये मरीज की स्थिति बिगाड़कर परिवार वालों से पैसे वसूलते हैं।”

सुमन और कांस्टेबल ने पूरी घटना कैमरे में रिकॉर्ड कर ली। इसके बाद सुमन ने अस्पताल की संस्था के अध्यक्ष को बुलाकर सारी सच्चाई बताई। जब अध्यक्ष और अन्य सदस्य यह जान पाए कि गरीबों की मदद के लिए बनाए गए अस्पताल में ऐसी धोखाधड़ी हो रही है, तो उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने सुमन से माफी मांगी और वादा किया कि अब से अस्पताल में सभी का इलाज मुफ्त होगा और किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं होने दी जाएगी।

सुमन ने तुरंत उन डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई और उन्हें गिरफ्तार करवा लिया। इस घटना के बाद अस्पताल में व्यवस्था को सुधारने का कार्य शुरू हो गया, और सुमन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि ईमानदारी और साहस से किसी भी अन्याय को खत्म किया जा सकता है।

कुछ दिनों की पुलिस जांच के बाद डॉक्टरों से सच्चाई सामने आती है। पता चलता है कि ये डॉक्टर पिछले 5 सालों से गरीब लोगों को ठग रहे थे और इस तरह करोड़ों रुपये का गबन कर चुके थे। जब सारी सच्चाई कानून के सामने आती है, तो सुमन कोर्ट में सबूत पेश करती है। इसके बाद कोर्ट सभी दोषी डॉक्टरों को 10 साल की सजा सुनाता है। इस फैसले के साथ सुमन और सभी पीड़ित गरीब लोगों को न्याय मिलता है।

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धन्यवाद तब तक के लिए जय हिंद जय भारत

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